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मेरा भारत महान: कल था कल भी जान
प्रश्न:
क्या भारत दुनिया का महान गुरु बनेगा?

उत्तर:
✍🏼 अवश्य ही भारत दुनिया का महान गुरु बनेगा।

यह हम अपने बल पर नहीं कह रहे हैं। यह भविष्यवाणी श्री अरविन्द (Shri Aurobindo) की है।

क्यों कि- भारत विश्व की एकमात्र प्राचीनतम सभ्यता है, जो देव-संस्कृति की ध्वज वाहक है, जो विश्व के सर्वोच्च सनातनधर्म, एवं सर्वश्रेष्ठ वेदान्त दर्शन का जन्मदाता है।

किन्तु ध्यान रखिए, भारत से तात्पर्य किसी भूमि के टुकड़े से नहीं, अपितु दिव्य चेतना से युक्त मनुष्यों के समुदाय से है।

यह विश्व के किसी भी देश के वासी हो सकते हैं।

जो वेदान्त पचा लेंगे, भविष्य उन्हीं का है। वही भारत है। वेदान्त दर्शन ही एकदिन समस्त विश्व का मार्ग होगा।

इस मार्ग का नेतृत्व करने वाला ही विश्व गुरु कहलाएगा।

वही भारत है।

वेदान्त दर्शन सभी धर्मों में अलग-अलग नाम से अभिव्यक्त किया गया है अतः वह सभी तथाकथित धर्मों का निचोड़ है। यह एक वैज्ञानिक मार्ग है।

इस पर किसी मत-संप्रदाय का ठप्पा नहीं लगा है।

वेदान्त दर्शन मनुष्य के उद्विकास का एकमात्र मार्ग है।

मनुष्य के उद्विकास-रथ का अगला पड़ाव पराचेतन है।

यह वो दिव्य चेतना है, जो मानव-चेतना में उतरने को व्याकुल है।

इसलिए

मनुष्य को स्व-चेतन से पराचेतन की उड़ान भरनी है।

वेदान्त दर्शन मानव चेतना के पंख पखेरू हैं।

सनातन-धर्म अर्थात् सर्वधर्म समभाव युक्त मानव-धर्म चेतना का आकाश-मार्ग है।

दिव्य संस्कृति से निर्दिष्ट जीवन-शैली है।

जहां यह सब हो, वही भारत है, वही विश्व गुरु है।

प्रश्न कर्ता के मन में यह सवाल क्यों उठा?

इसलिए कि- उसने सुना है, भारत कभी विश्व गुरु रहा था। किन्तु आज जो नैतिक संकट के बादल छाए हैं, उसके चलते भारतीयों की गिरती हुई चेतना से चिंता उत्पन्न होती है कि- भारत, जो दिन प्रतिदिन गर्त में गिरता जा रहा है, वह

क्या यह विश्व गुरु बनेगा?

सुनो, निराश न हो।

वह विश्व-गुरु आज भी है।

बादल में छिपे सूरज की तरह।

अभी जो भयानक नैतिक संकट आया है,

वह ढलती रात के गहराने जैसा है, जो सूर्योदय की आहट है।

वह नफरतों के बुझते दीपों की अन्तिम भभक जैसा है।

सच मानिए भारत निश्चित ही विश्व गुरु बनेगा।

आपको तय यह करना है, कि- आप इस उद्विकास-रथ की गति में अपनी ओर से कितना व कैसा योगदान करते हैं।

जैसे उच्चतम स्तर पर

महामहिम CJI श्री चन्द्रचूढ़ जी भारत की प्रसुप्त चेतना को जगा रहे हैं,

वैसे ही निम्न स्तर पर हम यह कर सकते हैं:

1) सनातन-धर्म (मानव-धर्म) और दिव्य-संस्कृति पर आधारित जीवन शैली अपनाना।

2) सर्वधर्म समभाव की भावना को जागृत रखना।

3) सामाजिक जागृति के लिए आन्दोलन करना।

4) समाज में व्याप्त पाखण्ड और दिखावे के विरुद्ध जंग छेड़ना ।

5) गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर की अभिकल्पना के "तपोवन" नामक शिक्षण-संस्थाओं की श्रंखला द्वारा आत्म-चेता पीढ़ी का निर्माण करना।

✓तो भारत के विश्वगुरु होने पर शंकित होने के बजाए सुनिश्चित हो जाएं और इसके विश्व गुरु बन जाने की दिशा में अपने एकल/सामुदायिक योगदान पर ध्यान केन्द्रित करें।
यही उचित होगा। 🙏♥️🙏