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आखिर दलित क्यों पिछड़ा है?

हां आज भी दलित लोग अपना असहाय जीवन जी रहे हैं ! वैसे तो देश के बड़े-बड़े नेता और बड़े-बड़े कानून सिखाने वाले लोग एक तरफ तो सबको समानता के दर्जे की बात करते हैं,तो दूसरी ओर उनका समाज जातिवाद को अधिक बढ़ावा दे रहे हैं यह कैसा नेतृत्व है ?आखिर यह सवाल हर एक दलित के मन में उठता है कि कब हमें पूरी तरह से अपने अधिकार और समानता आदि से वंचित नहीं होना पड़ेगा! कई बार बड़े-बड़े नेता कहते हैं कि हमने एससी एसटी के लिए यह किया-वह किया, लेकिन वास्तविकता में कोई सी भी सरकार शासन में हो गरीब वर्ग दलित पिछड़ा वर्ग आदि सभी के लिए किसी भी सरकार ने अपना सिर पर पल्लू ही झाडा़ है! न कि उसके अधिकार दिए हैं आज तक देश में कुशासन ही चलता आया है! जहां पर सरकार को उन वंचित लोगो के लिए काम करना चाहिए ! वहीं जो पैसा सरकार को शिक्षा हॉस्पिटल कॉलेज आदि के लिए लगाना चाहिए वह पैसा मंदिरों के लिए करोड़ों रुपया बहाया जाता है !यहाँ जिस तरह का लोकतांत्रिक शासन होना चाहिए उसके बजाय देश में सांप्रदायिकता का रंग फैलाया जाता है! आज लोकतंत्रात्मक शासन केवल कागजों में ही रह गया है ! यह वास्तविकता में अब लोकतांत्रिक शासन नहीं अपितु राजशाही शासन चलता है! यहां एक तरफ बड़े-बड़े मंत्री लोग भ्रष्टाचार रोकने की बात करते हैं ,तो दूसरी ओर खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं ! किंतु एक दलित के लिए तंत्र एक जाल भांति है!क्योंकि यहाँ वह बेचारा किसी भी हक या काम के लिए अदालतों, बड़े-बड़े सरकारी कार्यालयों, मंत्रियों आदि सभी के यहां चक्कर काटते हुए शाम तक घर निराश ही लौटता है!
© jitendra kumar sarkar