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बस इतना सा साथ 66
नेहा पार्किंग से बाहर निकलती ही है, कि मनीष का फोन आ जाता है। मनीष का फोन देख नेहा के चेहरे पर मीठी-सी, हल्की-सी मुस्कान आ जाती है और मुस्कुराते हुए फोन उठाती है ।
नेहा- गुड मॉर्निंग मैनेजर साहब।
मनीष- क्या बात है, सुर ही बदल गए आपके ।
थोड़ी देर पहले तो ( नेहा की नकल करते
हुए। ) हाँ जी सब ठीक है , लेट तो हो ही
गया है।
नेहा - अच्छा आपको वो सुर ज्यादा पसंद है तो
वैसे बात कर सकती हूँ मैं, कोई दिक्कत
नहीं है।
मनीष - अच्छा जी , बड़े ज़वाब आ रहे हैं अभी
आपको। उस वक़्त तो कुछ नहीं बोले
आप ।
नेहा- अच्छा तो क्या बोलती उस वक़्त , भाई
सामने था , मम्मी भी वही थी ।
मनीष - तो क्या हुआ ।
नेहा- अच्छा जी , कुछ नहीं हुआ ना । इस बार
दीदी को आने दो घर। फिर मैं उसी वक़्त
कॉल किया करूंगी जब आप घर होगे, फिर
देखूँगी आप कितना ज़वाब दोगे ।
मनीष - मेरी तो मम्मी भी मीनू से कम नहीं है।
उस दिन जब तुम्हारा ....... ( और मनीष
नेहा को अपनी टांग खींचने के किस्से बताने
लगता है। )
( घर पर कुछ और ही चल रहा होता है, जिससे नेहा बेखबर होती है। )
नेहा की मम्मी- अब तू किस बात का गुस्सा
निकाल रही है। नेहा ने थोड़ी ना आगे
बढ़कर कहा था कि उसे इस लड़के से शादी
करनी है, वो तो तूने मना किया तो उसने
समझदारी दिखाई।
ज्योति - हाँ, एक पूरी दुनिया में आपकी नेहा ही
समझदार है । नेहा ये , नेहा वो सुन- सुन के
पक गए हैं कान मेरे। और कुछ रह जाए
बाकी तो आपके कान भरने के लिए वो है
ही, आपकी लाडली नेहा ।
नेहा की मम्मी - मेरी तो तुम सारी ही लाडली हो
अकेली नेहा ही क्यूँ । वो भी जो अपनी हर
गलती के लिए मुझे ज़िम्मेदार मानती है
और तू भी जो अपनी जिद्द में गलत कर
जाती है। बोल मैं.....
( बीच में ही शिखा आकर बात काट देती है , और चिल्लाते हुए मम्मी से बोलती है। )
शिखा - मुझे क्यूँ बीच में ला रही हो । आप लोगों
की बात चल रही है, तो अपनी ही बात
करो ।
नेहा की मम्मी - तेरे से कोई बात नहीं हो रही, तू
क्यूँ बीच में आ रही है।
शिखा- पर मेरे बारे में तो हो रही है।
ज्योति- आपके बारे में कुछ नहीं हो रहा , और ना
कभी होगा । इस घर की तो बस एक ही
बेटी है-नेहा । और अब तो उस की शादी भी
है सब उसी के लिए होगा , मानों दूल्हा
खरीद रहे हों।
नेहा की मम्मी - कुछ तो सोच के बोल , ऐसा क्या
दे रहे हैं उसे । अरे उसने जितना कमाया है,
जितना दिया है घर में उसका दसवा हिस्सा
भी नहीं है। और अभी तो बस सोचा है
लिया क्या है। पाँच जोड़ी कपड़े ले लिए
उसके , तो क्या हक मार लिया तुम्हारा ।
ज्योति - हक की तो आप बात ही ना करो । ( कहते हुए ज्योति शिखा कमरे की तरह जाने लगते हैं। पर मम्मी हाथ पकड़ उसका रोकती हैं और उसे कहती हैं। )
नेहा की मम्मी - किस हक की बात कर रही है।
क्या हक मार लिया तुम्हारा। जब उसे समझ
नहीं थी बड़े छोटे कि तब भी अपने से पहले
तुम लोगों के बारे में सोचती थी। अगर उसे
कभी एक चॉकलेट भी दी है ना तब भी
उसका पहला सवाल यही होता था, उनको
दी ।
( गौरव भी सभी बात सुन रहा था , पर ना बीच में बोलना उसे सही लगा ना उनके बीच में आना । इसलिए वो अलग बैठा रहा । )
नेहा की मम्मी - ( ज्योति और शिखा से ) तुम
दोनों ज्यादा नहीं कोई एक ही ऐसा पल
बता । दो जहाँ उस लड़की ने अपने बारे में
सोचा हो , तुम्हे याद ही नहीं किया हो। बार -
त्योहार हो , या कोई और बात अपने लिए
नहीं लेती पर तुम्हारा जरूरत लेती है।
ज्योति - हाँ , तो वही रीत तो निभाई है। हर बार
जिसे मैंने छोड़ा उसे उसने लिया । इस बार
भी तो वही हुआ है। और अच्छा ही हुआ
वरना आपकी चश- मिश को कोई पसंद भी
नहीं करता । जिंदगी भर.....
( ज्योति की ऐसी बातें सुन, नेहा की मम्मी की आँखें भर आती हैं और गुस्सा भी बहुत आता है। इससे पहले कि ज्योति कुछ अनहोनी बात बोले वो गुस्से में चिल्लाकर ज्योति से कहती हैं। )
नेहा की मम्मी - बस ज्योति बहुत बोल लिया
तुने। अब इस खुशी के मौके पर कुछ और
बोल गई तो बता रही हूँ मुझसे बुरा कोई
नहीं होगा ।
( मम्मी की आवाज में गुस्सा भी था और दर्द भी जिसको सुन गौरव वहीं आ जाता है। )
ज्योति - सही कहा आपसे बुरा वैसे भी कोई
नहीं। अरे जब सभी बच्चों को एक नज़र से
देख नहीं सकती तो इतने बच्चे पैदा ही क्यूँ
किए। एक दो को ही रखती , बाकी को ....
गौरव- ( शिखा और ज्योति ) बहुत हो गया है,
अपनी हद मत भूलो । मैं भी सब सुन रहा हूँ,
बड़े- छोटे का लिहाज नहीं है तो इंसानियत
को ही याद रख लो । और अगर नहीं कर
सकते तो जब तक नेहा की खुशी- खुशी
विदाई नहीं हो जाती तब तक शांत रहो
उसके बाद चाहे तुम हर वक़्त यही तमाशा
करना और मम्मी तब तक प्लीज आप भी
हर जो बात आपको सुनने में सही ना लगे
उसे अनसुना करने की कोशिश करो । ( इससे पहले कि गौरव बात पूरी कहे शिखा बीच में ही बोल देती है। )
शिखा - मुन्ना , तुझे पता क्या है यहाँ, क्या चल
रहा है । तुझे पता क्या है वो इंस्टिट्यूट में
कैसा बर्ताव करती है।
गौरव - क्या करती है, तुम्हें बच्चों के सामने
नीचा दिखाती है या तुम्हारे साथ गाली
गलोच करती है। क्या करती है, बता ना ।
( शिखा और ज्योति के पास ज़वाब नहीं होता , एक दूसरे की तरफ देखने में भी नजरे धोखा दे रही होती हैं। )
गौरव - क्या हुआ अब कोई ज़वाब नहीं है।
क्यूंकि तुम भी जानती हो , वो अपने मतभेद
को बाहर नहीं दिखाती। तुम इंस्टिट्यूट में
बात नहीं करते कुछ कहलवाना होता है तो
भी बच्चों को भेजते हो पर वो फिर भी
तुम्हारे से आकर बात करती है जिसका
ज़वाब तुम कैसे देते हो ये मुझे बताने की
जरूरत नहीं।
( मम्मी अचंभे में देख रही होती हैं, ऐसा माहौल है इंस्टिट्यूट का उन्हें पता ही नहीं था । वहीं शिखा और ज्योति को बिल्कुल भी अफसोस नहीं होता है। )
तुम पेरेंट्स तक का लिहाज नहीं करती हो ,
तुम्हें नहीं लगता ऐसे में भी तुम्हें इंस्टिट्यूट
में रखना उसका गलत फैसला है ।
ज्योति - एहसान नहीं कर रही वो , पढ़ाते हैं हम
वहाँ पर ।
गौरव - जिसके बाकियों से ज्यादा वो payment
की जाती है तुम्हें।
ज्योति - हमें?
गौरव - हाँ तुम्हें, पिछले दो महीने से तुम्हें ही तो
दे रही है।
ज्योति - और उससे पहले जो इतने साल से .....
गौरव- किसने साल, डेढ़ साल से । पर वो इतने
सालों से कमा रही है उसने तो कभी एक
रुपया नहीं रखा। हमेशा अपनी सारी
कमाई घर पर दी , उसने तो साथ रहकर
भी बंटवारा ना किया । पर तुमने विचारों
का , स्वभाव का मन का रिश्ते का सब
चीज़ का बंटवारा कर दिया ।
ज्योति - तो उसे कमी किस बात की है। सब
हिसाब उसके पास है , मेरी जॉब लगने दे
फिर मुझे किसी से नहीं लेना देना ।
गौरव - कब लगेगी ?
ज्योति - जल्द ही लगेगी , देख लेना ।
गौरव - तुम लोग थकते नहीं हो , ( शिखा की
तरफ इशारा करते हुए) एक ये है , मुझे
अपना घर लेने दो , फिर मैं चली जाऊँगी।
एक तू है मेरी जॉब लगने दो , फिर मैं
दिखाऊंगी । पर ना तुम्हें आगे बढ़ना है,
ना सुधरना है बस कलेश करना है। अरे
जो करना है एक बार में करों ना ।
ज्योति - ( शिखा से ) आप घर देख लो दी , रेंट
का ही देख लो । हम दोनों साथ चलते हैं।
मम्मी - जो इतने सालों से हर बात पर घर छोड़ने
की धमकी देती रहती है, पर आज तक
खुद गई नहीं वो तुझे ले जाएगी साथ ।
( शिखा तो खुद हैरानी में थी , क्या बोले समझ नहीं आ रहा था । गौरव मम्मी को अपना काम करने को कहता है , और खुद भी अपने कमरे की तरफ जाने लगता है। )
ज्योति - ( जोर से , कड़क के बोलती है। ) पर
इस बार जाएंगे, दोनों जाएंगे । आप हमें
हमारा हिस्सा दे दो , और जो इतने
आपकी नेहा के इंस्टिट्यूट में पढ़ाया
उसका हिसाब कर दो ।
( ज्योति की ये बात सुन सब उसकी बात को सुनते रह जाते हैं, शिखा भी हैरान रह जाती है। )

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