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योग में विघ्न का मुख्य कारक:-
योग में विघ्न का मुख्य कारक:- योग का अर्थ है जुड़ना, संबंध। कलयुग में लगभग हर आत्मा शक्तिहीन है, क्योंकि उसका कनेक्शन परमात्मा से टूटा हुआ है। (डॉ.श्वेता सिंह) जब तक परमात्मा से कनेक्शन नहीं जुड़ेगा, तब तक ज्ञान की धारणा के लिए आत्मा में शक्ति नहीं आएगी। इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से जुड़ा रहे, ताकि परमात्म शक्तियां आत्मा में प्रवाहित हों और आत्मा पुन: अपनी खोई हुई शक्तियां प्राप्त कर सकें।
आत्मा हर समय योग युक्त रहे। हर कर्म करते, उठते बैठते, चलते फिरते, खाते पीते परमात्मा की याद बनी रहे। इसके साथ (डॉ. श्वेता सिंह) साथ कम से कम चार घंटा रोज, आत्मिक स्मृति में बैठकर, एकाग्र चित्त होकर ईश्वर को याद किया जाए। स्वयं को आत्मा समझकर जब परमात्मा को याद करेंगे तो ही उससे सहज कनेक्शन जुड़ पाएगा। देह अभिमान ही योग में सबसे बड़ा विघ्न बनता है। जब तक इस पुरानी दुनिया से, देह के पुराने संबंधों से, देह से संबंधित वैभवों से अनासक्ति नहीं होगी तब तक यथार्थ योग जुड़ नहीं पाएगा।
सभी का अनुभव है कि अक्सर याद या तो उसकी आती है, जिससे हमारा बहुत प्यार हो, जिसके प्रति हमें आकर्षण हो, जो हमें बहुत अच्छा लगता हो या फिर उसकी याद आती है जिसने हमें बहुत तंग किया हुआ हो, सताया हुआ हो, परेशान किया हुआ हो। ना चाहते हुए भी इन दोनों तरह के व्यक्तियों की याद आती रहती है। यही याद योग में विघ्न डालती है। जब परमात्मा को याद करने बैठते हैं तो ऐसे व्यक्तियों के याद की रील बुद्धि में घूमने लगती है। इसलिए परमात्मा कहते हैं कि पहले पूरा पूरा नष्टोमोहा बनना है। जब फलाना व्यक्ति, फलानी परिस्थिति के प्रभाव से मुक्त होंगे, तभी हमारी याद टिक सकती है।योगी वही है जो अच्छे या बुरे दोनों के प्रभाव से मुक्त होता है, जो हर हाल में संतुष्ट होता है। तभी ऐसे सहजयोगी बन सकेंगे जो हमको देखने से ही दूसरों का भी योग लग जाए।(डॉ.श्वेता सिंह)


© Dr.Shweta Singh