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ईश्वर की मर्जी
सुबह का सर्द बादली मौसम था, गांव के तिराहे पर हल्की चहल-पहल थी कुछ दुकानें खुल चुकी थी तो कुछ खुल रहीं थी I

नुक्कड़ की चाय की दुकान पर कुछ पिछड़े समाज के लोग चाय की चुस्की के साथ आपस में बातें कर रहे थे I

"जाड़ा बहुत जोर का है, सुने नहीं पडोसी की ठंड से जान चली गयी" एक चच्चा गहरी सांस लेते हुए बोले I

"अब जो भगवान चाहें" दूसरे चच्चा बोले I

"सही कहत हौ चच्चा वही होगा जो ऊपर वाले चाहत हैं" साथ में बैठा लड़का उत्साहित स्वर में बोला I

"सही कहत हौ बिटवा" सबसे बुजुर्ग वाले काका वोले I

"ऐसा कुछ नहीं है चच्चा, सबकुछ ईश्वर की मर्जी से नाहीं होता है अगर ऐसा होता तो ई दुनिया ऐसी नाहीं होती" वहीं से गुजरते हुए मैं बोला I

अब सब का ध्यान मेरी तरफ आ गया I

"ओह्हो तोहार दिमाग खराब हो गया है काऽ, जवन कुछ होता है भगवान की मर्जी से होता है", बुजुर्ग काका समझाते हुए बोले I

"तब तो हर घटना के जिम्मेदार भगवान हुए ना, फिर सरकार को काहे दोस देते हैं" हम थोड़े मजाकिया अंदाज में बोले I

"कीड़े पडेंगे तोहरे मुह में ऐसे शब्द निकालेगा तो, हमरे देखत बड़ा हुआ हमको सिखायेगा, पुरानी चली आ रही रीति-रिवाज परम्परा सब नकार देगा" काका आक्रोशित होते हुए बोले I

"अरे काका कोई कहा है एक पीढ़ी की गुलामी अगली पीढ़ी के लिए परम्परा बन जाती है" हम सबको देखते हुए बोले I

"तो काऽ कहना चाह रहा है जो कुछ हो रहा भगवान के मर्जी से नाहीं हो रहा है" काका थोड़ा शांत होते हुए बोले I

"सुनिए" हम बोले I

"आपको काऽ लगता है हिंसा, चोरी, डकैती बलात्कार सब जो हो रहा है वो सब उनकी मर्जी से हो रहा है क्या उन्होंने लिखा है I

"नहीं आप बताईये ईश्वर क्यों लिखेंगे या क्यों चाहेंगे कि छोटी छोटी नन्ही बच्चीयों का शोषण हो"

"अगर सबकुछ 'ईश्वर' की मर्जी से हो रहा है तो फिर आप किसी भी घटना का विरोध करके ईश्वर से 'बगावत' कर रहे हैं"

"यदि संसार के सभी जीवों को ईश्वर ने बनाया है तो दुनिया में कई मजहब और हर मजहब के अलग-अलग ईश्वर क्यों हैं" I

सारी बात सुनकर काका खोपड़ी पर हाथ धर लिए और हम अपना काम करने आगे बढ़ लिए I
यह सब सुनने वाले मेरे बारे में तमाम बातें सोच रहे होंगे, कुछ तो हमें अपना शत्रु भी मान लिए होंगे I

© सोमनाथ यादव