...

10 views

एक बड़ा मसला …
...एक बड़ा मसला

आज सुबह की ही बात है जब वो खाना खाते खाते चीन, नेपाल के साथ बढ़ते सीमा विवाद व डीज़ल के बढ़ते दामों जैसे गम्भीर मसलों पर बात कर रहा था।

और करता भी क्यों ना, आख़िर 2020 के साल ने क्या क्या नये मसले नही दिखा दिये थे जनता को...ख़ैर जितने गम्भीर मसले चीन और डीज़ल थे उससे ज़्यादा गम्भीर कुछ हो भी नही सकता था सो वो मुँह में निवाला रखते हुए सीमा विवाद पर बड़ा भारी ज्ञान बाँट रहा था।

निवाले को चबाते चबाते अचानक उसका ज्ञान कहीं अटक गया और वो चीन के गम्भीर मसले से भटक गया। अब वो ख़ामोश था या शायद उसका सारा ध्यान बायीं दाढ़ के पास वाले मसूड़े पर केंद्रित था।

लगता था शायद कुछ मसूड़े की खाल और दांत के बीच फँस गया था अब वो ख़ामोशी से अपनी जीभ को एकाग्र हो मसूड़े की सेवा में लगा चूका था।

बहूत देर तक कठीन संघर्ष करने पर भी मसला हल नही हुआ तो रसोईघर से माचिस की तीली मँगवाई गयी और उससे दांत व मसूड़ों को कुरेदा गया। यह वही परम्परागत तरीक़ा था जिसका प्रयोग अमुमन हर हिन्दोस्तानी कर चूका है अपने जीवन काल है ।

ख़ैर अन्ततोगत्वा मसूड़ों में उल्झी उस समस्या का हल हो गया और मसूड़े की खाल में फँसे मिर्ची के बीज को निकाल दिया गया। इस उलझन से निजा़त पाने के बाद उसे जो सुकून मिला उसका आनन्द ही कुछ और था।

ख़ैर,जैसे ही मसूड़ों का मसला हल हूआ वो फिर से अपने बड़े भारी चीन के मसले पर लौटा आया ...पर एक मिनट, क्या वाकई चीन इतना बड़ा मसला है? या यह डीज़ल पेट्रोल के बढ़ते दाम ज्यादा बड़े मसले हैं?

इस यक्ष प्रश्न का जवाब शायद किसी बड़े से बड़े सियासतदान या ज्ञानी के पास भी नही था पर.....आज उसके पास इस बात का जवाब ज़रूर था की चीन, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, कोरोना, डीज़ल-पेट्रोल, आर्थिकमंदी, बेरोज़गारी व धार्मिक हिंसा यह सब दिखने में कितने ही बड़े मुद्दे क्यों ना हो पर दाढ़ में फँसे तिनके या मिर्ची के बीज से ज्यादा बड़े मसले कभी हो ही नही सकते।

वैसे भी किसी भारी संत ने इसी सुबह कहा था कि “जाकी दाढ़ फँसे नही कॉंईं, वो का जाने पीर पराई”

अत: अपनी दाढ़-दांत का ख़्याल रखें बाकी मसले सियासत वालों के छोड दे आख़िर उनकी भी तो रोज़ी रोटी का सवाल है!

नोट- वो बीज इसी मिर्ची की चटनी का फँसा था 🧘‍♂️
© theglassmates_quote