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फलो का व्यापारी 🙂🤭
एक बार जरूर पढ़ना चाहे लाइक मत करना।

बात 1805 की है उस समय आप जानते है वर्तमान कि तरह भौतिक सुख सुविधाएं नही थी। उस समय भारत के पश्चिम इलाके मै एक व्यापारी था जिसका नाम अमनदास था। जो कि अपनी ईमानदारी ओर बहादुरी की के साथ साथ एक दरिया दिल इंसान भी था।
ओरो से बिल्कुल अलग शांत स्वभाव वाला। उसकी पास काफी अच्छी जमीन थी जिसपर वो खैती भी करवाता था। इसके अलावा उसका आम का एक विशाल बगीचा था ओर फलो का व्यापारी था जो शहर मे फल बेचता था ।
कुछ दिनो बाद उसके गॉव के निकट ही एक अन्य व्यापारी आ गया जो बहुत ही लालची ओर मतलबी व्यापारी था उसने सोचा क्यो ना मे इसके फल लेकर खुद उन्हें अच्छे दामो मै बेच दु। इसलिए उसने उससे फल खरीदने की इच्छा जताते हुए बोला - अमनदास जी इतनी दुर जाने से अच्छा है आप मुझे अपने आम बेच दो। इसपर अमनदास कहता है -मुझे इसके क्या दाम मिलेंगे। दूसरा व्यापारी कहता है - उससे कही ज्यादा कीमत दूंगा। आपके हर एक

आम के आम की।

अमन कहता है -इतने से क्या होगा।मेरी बैलगाड़ी का चारा निकाल कर मुझे कुछ अच्छा फायदा होता हुआ नही दिख रहा तो दूसरा व्यापारी कहता है- मे तुम्हे एक एक आम की गुठलियों के दाम भी देने को तैयार हू। इस पर अमनदास राजी होकर उसे अपने सारै फल बैच देता है।ओर काफी अच्छा मुनाफा कमाकर आ जाता है।
"समाप्त"

ओर दोस्तो उसी दिन से कहावत बनी-
"आम के आम गुठलियों के दाम"

हमारे साथ जुड़े रहिए हम करेंगे एक एक कहावत का पर्दाफाश
© Praveen_sikar