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डे ""कथा
अथ श्री ""डे ""कथा
आज सोशल मीडिया "मदर्स डे " के संदेशो से भरा पड़ा है, मै अपनी मां पिता के चरण छू कर बाहर कार्य पर जाता हूँ पहले बचपन में स्कूल जाता था ,बचपन में तो फिल्मो में लडायी झगड़े और फाईट अच्छी लगती थीजैसे
जैसे बडे हुये जन्मदिन याने "बर्थ डे " मनाने की परम्परा का ज्ञान मिला और फिर मार्कशीट में अपने "बर्थडे "की तारीख ढूंढी तो पता चला हमारी जन्मतारीख और कक्षा के दूसरे दोस्तो की जन्मतारीख तो क्या मोहल्ले के सब जानने वाले बच्चो की जन्म तारीख एक या दो जुलाई हैं.. हम तो पहले रोज सुबह उठकर नया ही जीवन महसूस करतै थै पर आजकल पत्नी जब बर्थडे विश करती है तो लगता है आज ही जीवन जीवन है,..पत्नियौ के बर्थडे याद करने भी जरूरी है बर्थडे के साथ साथ "विवाह डे " भी अलग ही अनुभव वाला होता है काम पर फाईलै समेटतै समेटते अगर "विवाह डे " भूल गये तो बर्थ डे की विश का सारा बदला निकाल लिया जाता है ।" डे "तो पिता का भी होता है आजकल के बच्चे वैसे तो पिता की टाट पर ही बैठै रहते हैं पर "फादर्स डे " पर चरण वन्दन करना नहीं भूलते वन्दन करे ना करे पर कोई होली दिवाली की फोटो सोशल मीडिया पर जरूर डालनी है और स्टेटस खतरनाक "आई लव यू डैड " साला यहां तो आठवीं में आने के बाद ही कभी कभी पापा को पापा कहने की हिम्मत होती थी इज्जत और डर साथ साथ चलते थै नोटबुक के पैसे भी मम्मी के थ्रू मांगे जाते थै.. पैसे तो" वेलेन्टाईन डे "पर आजकल के जवान खर्च करते हैं चाकलेट डे से लैकर गुलाब के फूल का भी डे निर्धारित है ।चौरी करे चाहे उधार मांगे या स्कालरशिप के रुपये हो अथवा फादर्स डे वाले पिता की गाढी कमाई पैसा खर्च कर हरे भरे वृक्षो की आड में "वैलेन्टाईन डे" का आयोजन जरूरी है.. हरे भरे वृक्षो के लिये भी "पर्यावरण डे " की फोटोग्राफी के चर्चे अखबारो में दिखते ही होंगे नर्सरी से नये नवेले पोधे लाकर एक खड्डा और एक बाल्टी पानी में खूब फोटोशाप होता है.. नेताओ के लिये यह उत्सव बहुत अलग होता है उसके बाद तो वह नर्सरी वाला हरा भरा इन्दर देव की कृपा पर ही निर्भर हैं.. देव भी पृथ्वी को पूजते है धरती को मां कहा जाता है इसका भी एक दिन होता है "पृथ्वी डै "मां तो मां होती हैं बुजुर्ग कहते हैं पत्नि के अतिरिक्त प्रत्येक महिला में मां और बहन कै दर्शन करो पत्नि भी एक मां है परन्तु अभी "वाईफ डे " सुनने में नहीं आया। वाईफ भी तो एक महिला है और महिलाओ के लिये भी डे का निर्धारण किया गया है... दिल्ली में एक कम उम्र की महिला के साथ क्रूरतम घटना कर मार दिया जाता है उसके हत्यारो के लिये वकील खडे हो गये सजा मिलतै मिलतै छ साल पूरे हो जाते हैं तब जाकर उसकी माँ अपनी बैटी को न्याय मिला मानती है। मां तो सबकी होती है मां तो उन सजायाफ्ता मुजरिमो की भी थी.. देश के हजारो पांच से पचास साल की बालात्कार पीडिताओ की भी मां होती है.. वै खुद भी मांये थी क्योकी भारत में कन्या मां मानी जाती हैं।यह धरती भी मां है ,इधर कोरोना ने गंगा मां को भी स्वच्छ कर दिया है ...आज मदर्स डे है।।।

मुकेश कुमार कुमावत