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सहारे के सहारे.....

एक विद्वान किसी गाँव से गुजर रहा था। उसे याद आया कि उसके बचपन का मित्र इस गाँव में रहता है। उसने सोचा कि चलो उससे मिला जाये।

वह मित्र के घर पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसका मित्र गरीबी व दरिद्रता में रह रहा है। साथ में दो नौजवान भाई भी हैं।

वह अपने मित्र से बातचीत करने लगा। बातें करते-करते शाम हो गई। विद्वान ने देखा, मित्र के दोनों भाइयों ने घर के पीछे आँगन में फली के पेड़ से कुछ फलियाँ तोडीं और घर के बाहर बेचकर चंद पैसे कमाये और उनसे दाल-आटा खरीद कर ले आये। तीन भाई व विद्वान के लिए भोजन की मात्रा कम थी। विद्वान के लिए भोजन कम पड़ता, इसलिये एक भाई ने उपवास का बहाना बनाया, दूसरे भाई ने पेट खराब होने का। केवल उस विद्वान के मित्र ने और विद्वान ने साथ में भोजन ग्रहण किया।

रात हुई, विद्वान उलझन में था कि मित्र की दरिद्रता को कैसे दूर किया जाए? उसे सारी रात नींद नहीं आई। रात में वह चुपके से उठा, एक कुल्हाड़ी ली और आँगन में जाकर फली का पेड़ काट डाला और रातों रात भाग गया।

सुबह होते ही भीड़ जमा हो गई। सभी ने एक स्वर में विद्वान की निंदा की कि कैसा निर्दयी मित्र था, तीनों भाइयों की रोजी-रोटी के एकमात्र सहारे को एक झटके में खत्म कर डाला। तीनों भाइयों की आँखों में आँसू थे।

2-3 बरस बीत गये। विद्वान को फिर उसी गाँव की तरफ से गुज़रना था। डरते-डरते उसने गाँव में कदम रखा। पिटने के लिए भी तैयार था। वो धीरे से मित्र के घर के सामने पहुँचा, लेकिन वहाँ पर मित्र की झोपड़ी की जगह उसे कोठी नज़र आई।

इतने में तीनों भाई भी बाहर आ गये। अपने विद्वान मित्र को देखते ही रोते हुए वे उसके पैरों पर गिर पड़े और बोले, "यदि तुमने उस दिन फली का पेड़ न काटा होता, तो आज हम इतने समृद्ध न हो पाते और हमने इतनी मेहनत नहीं की होती। अब हम लोगों को समझ में आया कि तुमने उस रात फली का पेड़ क्यों काटा था?

जब तक हम सहारे के सहारे रहते, तब तक हम आत्मनिर्भर होकर प्रगति नहीं कर सकते। जब भी सहारा मिलता है, तो हम आलस्य में दरिद्रता अपना लेते हैं। हम तब तक कुछ नहीं करते, जब तक कि हमारे सामने नितांत आवश्यकता नहीं होती, जब तक कि हमारे चारों ओर अंधेरा नहीं छा जाता। तुमने उस दिन फली का पेड़ काटकर हम पर बहुत बड़ा उपकार किया था।"

जीवन के हर क्षेत्र में इस तरह के फली के पेड़ लगे होते हैं। यदि हम प्रगति करना चाहते हों, तो इन पेड़ों को एक झटके में काट डालना चाहिए। हमारी प्रगति का रास्ता अपने आप खुल जायेगा क्योंकि
*“हर दिन अपनी नियति को निर्मित करने का एक सुनहरा अवसर होता है।”