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रेलगाड़ी का वो सफर
ये बात वर्ष 2016 की जब पहली बार में बस का सफर छोड़ कर रेलगाड़ी में जा रहा था ,
हड़बड़ी में भागते हुए में रेलगाड़ी में चढा
और हापंते हुए अपने सीट तक पहुंचा , पहुंच के मेने अपना सामान रखा , सीट पर बैठ गया इतने में कही दूसरी सीट से मधुर ध्वनि सी सुनाई की सुनिए ये एस 5 कोच है ना में फोन फोन के गीत सुनने मे मगन था की इतने में
एक कोमल हाथ मेरे कंधे पर आ लगा और
भभक कर उठा की कोन है भाई , और मेने देखा की एक बिंदी लगाए और मुस्कान हुए चहरे से एक आवाज ने मुझे की ये सीट मेरी है
इतने में मेने अपनी टिकट निकाली और देखी तो पता चला की वो सीट उनकी थी , और मेरी उनके सामने वाली सीट थी , हम अपनी अपनी सीट पर बैठे रेलगाड़ी रवाना हुई और हम वापस अपने फोन में लग गए ,कुछ क्षण बीते तो मेने देखा की वो मुस्काता चहरा मुझे आकर्षित कर रहा है, पर कही कुछ कह ना दे यही में कुछ बोल नहीं पा रहा था , डर इतना था की में तुम कहा जाओगे ये पूछने घबरा रहा था , बस उसकी वो मुस्कान देख मन में खुश होए जा रहा था , इतने में गाड़ी कही कॉर्सिंग पर रुक गई और में नीचे टहलने के लिए उतर ने वाला था की फिर एक आवाज आई की सुनो आप भी सूरत जा रहे हो ? की में वापस सीट पर बैठ गया हो हिचकते हुए जी में
हा हा में सूरत ही जा रहा हु इस दौरान उन्होंने कहा कि सूरत से है या कुछ और काम
मेने जी नही में काम के सिलसले में जा रहा हु
और एक जोरदार हसी आई उन्हे , इतने में गाड़ी शुरू हो हमारी बाते भी , बातो -बातो में
वो कहने लगी क्या हुआ बड़े शर्मीले किस्म के लगते हो आप तो , में नजर चुराकर कहने लगा नही नही ऐसा नही है थोड़ा सा इतना कह चुप हों गया इतने में फिर एक आवाज आई और
वो आवाज थी " चाय बोलो चाय वाले चाय बोलो " वो आवाज सुन हम दोनो के आंखे चमक उठी और एक खुशी दिखी इतने मेने कहा कि आपको चाय पसंद है , की बस चाय ही पसंद है एक हसी के साथ कहा चलो चाय हो जाए , चाय पीते हुए पूछा की तो क्या करते है आप ? अब में थोड़ा खुल कर कहने लगा जी में लेखक हु , कल्पना को हकीकत लिख और सब लिख कर बस चुप रहता हु , इतने सामने से आवाज़ की वाह वाह क्या बात है
उस दौरान मेने फिर एक दफा नाम पूछना चाहा पर डर इतना की पुछ नही पाया, बातों के सिलसले में कब रात हुई और रात की सुबह पता नही चला , अब वक्त था सूरत उतरने का
फिर मैंने कहा चलो तो फिर अब चलते है
फिर मिलेंगे किसी सफर किसी मोड़ पर
इतने वो कहने की फिर क्यूं भला इस इतवार आओ चाय पर मिलते है हंसते हुए बात को टाल दिया मेने गाड़ी रुकी स्टेशन से बहार निकलते हुए मैंने हिम्मत कर के पूछ लिया कि सुनिए इतवार को भला कैसे आऊं में।
मेरे पास तो आपके कोई नम्बर नही है इतने वो हस्ते हुए कहने लगी लो भला ये तो मेने दिए नहीं , नंबर देते कहने देखो नंबर दे रही हू इसका मतलब ये नही की तुम बस नंबर पर कॉल करते रहो मेने हसा और कहने लगा अरे नहीं नहीं ऐसा नही , और हम वहा से निकल गए अपने अपने घर को , कुछ हफ्ते बीते मेने सोचा आज कॉल किया जाए , फोन घंटी से ज्यादा आवाज मेरी धड़कन कर रही उस वक्त
इतने फोन उठा और आवाज आई जी कोन
मेने कहा कि में , जी में , इतने में वो कहने लगी अरे अरे तुम आज
कहा थे इतने दिन ये वो , एक दफा चाय दो चाय के बाद पता चला कि
रेलगाड़ी नही
"उस दिन मैंने एक दोस्त पाया
बस ये सब सोच कर कभी मन भरा आया
रेलगाड़ी का वो सफर आज फिर याद आया"
© असुर~