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परिंदों की कहानी
बात 2018 की है, जब मेरा बेटा आदित्य नवीं में पढ़ता था। उन दिनों ना जाने उसे ऐसा क्या चस्का लगा कि सोते जागते बस एक ही रट लगा रखी थी-मम्मी मुझे एक pet चाहिए और वह भी कुत्ता। प्लीज आप एक मुझे एक छोटा पप्पी लाकर दे दीजिए। मैं उसका पूरा ख्याल रखूंगा। उसकी पूरी दिनचर्या का कार्य मैं ही करूंगा। ठीक इसके विपरीत मुझे pet का कोई शौक नहीं था। उसने तो मानो जीना ही हराम कर दिया। ना बिस्तर पर सोता, ना ही कुर्सी पर बैठता। अपनी बात मनवाने के लिए हमेशा जमीन पर बैठ जाता। मैं भी बहुत चिढ़ गई। मैंने उससे साफ शब्दों में कहा- देख बेटा! या तो मैं तुझे पाल लूं, या तो उसे कुत्ते को पाल लूं। मैं किसी एक को ही पाल सकती हूं। एक मां होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है कि मैं तुझे पालूं। हां, अगर तुम्हें चाहत है कि तुम एक कुत्ता पालो, तो जब तुम बड़े हो जाना अपने पैरों पर खड़े हो जाना, तब तुम्हें जो पालना हो उसे पालना। पर मैं तो नहीं पा सकती। इसीलिए फिलहाल तुम तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। जो सबसे ज्यादा जरूरी है। हां, उस समय तो वह मेरी बात मान गया। पर जब अगले साल जब वह दसवीं में आया,‌ तब उसने अपना पुराना राग, फिर से अलापना शुरू किया। मैं सच में बहुत परेशान थी। इस बार तो उसने साफ धमकी दे डाली।‌ इसी बीच विद्यालय में उसे विज्ञान विषय के...