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प्यार -सा लगा
जब मैं अपने बचपन से एक कदम जवानी में रख रही थी ,तब आमतौर पर आशिकी के अजीब से तरीके थे। लड़की को सुंदर दिखना चाहिए था। और लड़के को हैंडसम और रिच । फिल्मी हीरो की तरह रोमांटिक और लड़की को देखकर नुक्कड़ पर डींग हांकना। अमूमन ये तरीके एक लड़की को काफी इम्प्रैस कर सकते थे।
पर मेरा मामला एकदम अलग था, मुझे लगता था कि ऐसा प्रेम, प्रेम नहीं है सिर्फ सुंदरता की तारीफ है। और ये बस सुंदर रहने तक वाला प्यार है। और दूसरा ये समाज में बेइज्जती का भी कारण था और तीसरा मुझे अपनी जिम्मेदारी का सदा से ही भान रहा।
इसलिए मैं कभी भी जवान हुई ही नहीं थी मुझे मालूम ही नहीं हुआ शिवाय उस एक लम्हे के।
मैंने चेहरे पर गुस्सा पहनने की आदत डाल ली थी, ताकि बाकी लड़कियों कि तरह मुझे कोई ना देखे।...