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प्यार -सा लगा
जब मैं अपने बचपन से एक कदम जवानी में रख रही थी ,तब आमतौर पर आशिकी के अजीब से तरीके थे। लड़की को सुंदर दिखना चाहिए था। और लड़के को हैंडसम और रिच । फिल्मी हीरो की तरह रोमांटिक और लड़की को देखकर नुक्कड़ पर डींग हांकना। अमूमन ये तरीके एक लड़की को काफी इम्प्रैस कर सकते थे।
पर मेरा मामला एकदम अलग था, मुझे लगता था कि ऐसा प्रेम, प्रेम नहीं है सिर्फ सुंदरता की तारीफ है। और ये बस सुंदर रहने तक वाला प्यार है। और दूसरा ये समाज में बेइज्जती का भी कारण था और तीसरा मुझे अपनी जिम्मेदारी का सदा से ही भान रहा।
इसलिए मैं कभी भी जवान हुई ही नहीं थी मुझे मालूम ही नहीं हुआ शिवाय उस एक लम्हे के।
मैंने चेहरे पर गुस्सा पहनने की आदत डाल ली थी, ताकि बाकी लड़कियों कि तरह मुझे कोई ना देखे। मैं जैसी थी उससे कहीं ज्यादा बदसूरत रहने की कोशिश करती , क्योंकि यही समाज में बा-अदब की पहचान है की जिस पर किसी की नजर नहीं पड़ी।पर उस दिन कुछ अलग हुआ था, नहीं मैं तो वैसी ही थी, पर मेरे साथ कुछ अजीब सा
मैं स्कूल से वापस आ रही थी और मुझे महसूस हुआ कि कोई मुझे देख रहा है। और मैंने मुड़कर देखा।वो खड़ा था और मुझे देख रहा था।
पता नहीं वो किस स्कूल में पढ़ता था पर मेरे रास्ते में साईकिल लिए खड़ा था। मुझे देखते हुए उसके चेहरे पर कोई गुस्सा,कटाक्ष या मुस्कुराहट नहीं थी।एकदम भाव विहीन। हां उसकी नजर में जरूर कुछ था की मुझे एकदम से सरसरी आ गई। वो देखे जा रहा था और मुझे पता था पर मैं औरों की तरह उसकी तरफ गुस्से से नहीं देख पाई। मगर मैं उसकी तरह ही उसको देख भी नहीं पाई।
दूसरी बार जब मेरी शादी हो गई और मैं अपने पति से मिली । ये सामाजिक स्वीकृति से बंधा रिश्ता था। मगर वो बहुत अच्छे इंसान थे , मेरी इज्जत और फिक्र दोनों ही करते थे। मगर इस बार भी मुझे ये किसी समझौते से ज्यादा नहीं लगा।
तीसरी बार जब मेरे माथे पर सिन्दूर देखकर भी जब वो अपनी नज़र नहीं हटा सका था मुझसे।
वो अजनबी पता नहीं क्यों देखे जा रहा था और वो भी तब जब बहुत सारे लोग आस पास थे मगर वो सिर्फ एकटक देख रहा था। उसकी नजर हट नहीं रही थी और मैं खुद में सिमटती जा रही थी।एक इज्जतदार औरत के लिए ये बेइज्जती का बाईस है कि कोई उसे यूं देखे। फिर पता नहीं मुझे क्या सूझी मैंने मैंने उसके पास जाकर अपना बैग गिरा दिया, वो चौंक कर सीधे खड़ा हो गयाऔर झेंप गया।
उसकी भी नजर अजीब थी मगर मैं उसकी तरफ भी उस नज़र से नहीं देख सकती।मन ने तर्क दिया कि वो शायद फ्लर्ट कर रहा था ।
मगर चौथी बार जब मेरी छाती जवानी के पहले दिनों से भी ज्यादा सुंदर दिखने लगी थी,जब मेरे रंग में एक हल्के पीले रंग ने भी अपनी जगह बना ली। मैं अपने आपको अपने अंदर महसूस करने लगी और फिर एक दिन वो मेरी गोद में आया । उसने हल्की सी आंखें खोल कर मुझे देखा और अपनी उंगली से मुझे पहचानने की कोशिश करने लगा, मैं बस उसे देख रही थी एकटक । आंखों में एक बूंद पानी भी था मगर आज ये पलक भी नहीं झपक रही थी।
आज मुझे लगा जैसे ये कोई सबसे अलग अहसास है
ये कोई आकृषण नहीं है, कोई छिछोरापन नहीं है, और ना ही कोई समझौता है।ये कुछ अलग अहसास है । क्या मैं इसको प्यार नाम दूं। हां ये प्यार -सा ही है ।बस एक बच्चे और मां के बीच ।
© light of sun