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फिर कब मिलोगे दोस्त !!
मित्रता दिवस (Friendship Day) के अवसर पर संदेशो को पढ़ रहा था कि एक पुराने मित्र की याद ताजा हो आई ।

वह हमसे जैसे मिला था वैसे बिछड़ भी गया पर उसका स्नेह हमें अभिभुत कर गया है और आज भी हमें उसकी याद दिलाता है। शायद निस्वार्थ स्नेह का प्रभाव बहुत गहरा होता है भुलाये नहीं भुलता !

गर्मी की छुट्टियों में गांव गया था, सुबह का उजाला गर्मीयों में जल्दी हो जाता है। बेहद आनंददायी शीतल और शुद्ध वातावरण मानों मन को मोह से लेते है। प्रात: morning walk पर जाना एक सुखद अनुभव होता है।

ऐसे ही एक दिन टहलकर वापस लौट रहा था, घर के दरवाजे तक पहुचा ही था कि देखा यह जनाब खड़े होकर दरवाजे की ओर आशापुर्ण नजरों से ताक रहे हैं। एकबार मुझे देखकर पुनः वे फिर से दरवाजे की ओर देखने लगे।

इस लेख के मुख्य शीर्षक पर उन्हीं की तस्वीर है । जी हां मैं एक कुत्ते के बात कर रहा हूं जो स्नेह का एक सबक हमें पढ़ा गया। हम उसे प्यार से " कालु" बुलाते थे।

खैर मैंने घर में जाकर धर्मपत्नी जी से कहा कि ‌यदि‌ कुछ खाने को हो तो डाल दें। रात की कुछ रोटियां पड़ी थी जो उन्होंने डाल दी । कालु खुशी से खा गया ।दुसरे दिन टहलकर आने पर जनाब फिर उसी मुद्रा में खड़े मिले ,हां आज मुझको देखकर मेरे पास आकर मेरे आगे पीछे ऐसे घुमने लगे जैसे बहुत पुराना परिचय हो। आज़ घर वालों ने उसे देखकर रात का बचा खाना उसे दे दिया। कालु की खुशी का ठिकाना न रहा।

अब यह नित्य का क्रम हो गया एकाध दिन टहलकर वापस आने पर देखता कि जनाब भोजन का लुत्फ उठा रहे होते ,रुककर मेरी ओर देख फिर अपने कार्य निगम्न हो जाते । यह सिलसिला जारी रहा। यह सब यही तक सिमित रहता तो यह एक साधारण सी बात होती पर ...कालु ने शनै शनै अपने स्नेह पाश में हमें बांधना सुरु कर दिया। जाने कैसे वह मेरे सैर से लौटने के रास्ते पर पहले से ही पहुंच जाता और फिर मुझे देखते ही उछलता कूदता मेरे साथ ही घर आता। एकाध बार गांव वालों ने यह जानकर कि वह मुझे तंग कर रहा है उसे झिडकारने की कोशिश की पर वह टस से मस न हुआ। मेरी पत्नी जब उसे खाने के लिए कुछ देती तो वह अपनी खुशी का इजहार अवश्य करता।

अब कालु के हिस्से की भी रोटी बनने लगी। पहले पहल तो वह कुछ ही समय हमारे द्वार पर रहता था पर अब अधिक समय यही रहने लगा । हम लोग यदि दैनंदिन कार्यो में व्यस्त हो जाते तो वह घर की चोखट पर‌ यूं बैठ जाता मानो जताना चाहता हो कि यह उसका ही घर है (तस्वीर ऐसे ही एक पल की है)

मेरी बेटी सुबह दहलीज पर बैठ कर चाय पीती तो वह भी वही आसन जमा देता। उसकी ओर ताकता रहता, ऐसे ही एक दिन मेरी बेटी ने अपने हाथ के क्रिम बिस्किट में से एक बिस्किट उसके आगे डाल दिया। मेरी मम्मी जो पास ही खड़ी थी उन्होंने मेरी बेटी से कहा मत डालो कुत्ते भी कहीं क्रिम बिस्किट खाते हैं पर‌ कालु न बल्कि खा गया और मिलने की आशा में मेरी बेटी की ओर ताकने लगा। फिर एक बिस्किट डालने पर उल्टा पुल्टा होकर खाना लगा मानो अपने मित्र के साथ खेल रहा हो। मेरी बेटी के कान पकड़ने पर भी वह बिल्कुल बुरा नहीं मानता था बल्कि यूं उल्टा पुल्टा होकर जैसे अपने से किसी छोटे को खिला रहा हो।

सारांश यह कि अब वह हमारे परिवार का सदस्य बन गया था। इतना होने पर भी वह दहलीज लांघ कर घर के अंदर नहीं आता था।

एक दिन मैं बाज़ार जा रहा था। मुख्य सड़क मेरे घर से कुछ दुर है जहां से कुछ न कुछ वाहन बाजार के लिए मिल जाता है। मुख्य सड़क पर खडा होकर मैं वाहन का इंतजार करने लगा। अचानक मैंने देखा कि कालु मेरे बगल में बैठा है मानों मेरे साथ बाजार जाना चाहता हो, फिर कोई परिचित मिल जाने के कारण मै उनसे बातें करने लगा और कालु दिमाग से उतर गया।

जब रात को शान्त चित्त हुआ तो मुझे यह ध्यान आया कि कैसे कालु बाजार जाने की तैयारी में था। घर वाले यह सुनकर स्तंभित हो गए।

छुट्टियां खत्म हुई । वापसी का दिन आ गया। कालु को हमारी गतिविधियों से शाय़द हमारे जाने का आभास हो गया था।उस दिन वो बुझा बुझा सा था। कभी दौड़कर घर के दरवाजे पर आता कभी उस वाहन के पास जो हमें लेने आया था। घर के हर सदस्य को उछल कूद कर उनके इर्द-गिर्द घुमने लगा मानो कह रहा हो मुझे भी साथ ले चलो।

दिल बोझिल हो गया। आज अन्य रिश्तेदारों के साथ एक अज़ीज़ दोस्त बिछड रहा था।

जीवन की आपाधापी में कुछ काल कालु की विस्मृति हो गई। पुनः गांव जाने पर हम उसका इंतज़ार करते रहे पर कालु नहीं आया...ढुढने की कोशिश भी नाकाम रही। वह फिर नहीं मिला उससे मिलता जुलता कोई कुत्ता भी दिखाई दे जाता तो हम आशान्वित हो जाते पर वो पुण्यात्मा फिर नहीं मिला पर हमें निस्वार्थ स्नेह का सबक सिखा गया....

© Omprakash Singh
© s_aumprakash