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सादगी से बढ़कर कुछ भी नहीं..
कुछ ही दिन पहले की बात है एक दोस्त की शादी में गया था। बहुत ही भव्य आयोजन किया था वैसे यह सब मुझे आकर्षित नहीं करता क्योंकि मेरा जीवन सादगी से भरा है।
नीति नियम के साथ विवाह कार्यक्रम शुरू हुआ। मेरे लिए नया अनुभव था । दोस्त ने बताया था कि आज जरूर आना आज लग्न है या तिलक ।
हमारे यहां ऐसी परंपरा किसी भी रिश्ते की शुरुआत में होती है जब बात पक्की हो चुकी हो और हल्दी का टीका लगाकर इष्टदेव और पितरों के नाम से ग्यारह या इक्कीस इक्यावन का लिफ़ाफ़ा हल्दी लगाकर वर वधू पक्ष एक दूसरे को आपस में भेंट करते हैं। पर जब मैंने दोस्त के यहां देखा कि वहां एक थाल में रुपयों का ढेर सोना उसे भेंट किया जा रहा है तो सचमुच आँखे दंग रह गई (शर्म से)।ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे यहां ऐसी परंपरा प्रतिबंधित है। सही मायने में देखकर तो ऐसा लगा कि सौदेबाजी चल रही समाज में हम कहीं भी आगे नहीं बढ़े । मैंने अपने उन दोस्तों को सचेत किया है जो दहेज और ऐसी लेन देन जैसी व्यवस्था के हिस्सेदार हो। एक कारण यह भी है कि मेरे दोस्त मुझे सच नहीं बताते और स्वेच्छा के नाम पर इसका लुत्फ़ उठाते हैं।
मुझे नहीं पता मैं ऐसा क्यों हूँ जो दुनिया की दिखावटी चीजों से भागता हूँ।
कोई मेरी ख़्वाहिश पूछे तो बस यही कहता हूँ
...कुछ नहीं ..मेरे लिए सादगी से बढ़कर कुछ भी नहीं ।