...

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# प्रमोद के प्रभाकर भारतीय,नागौर कृत काव्य कुसुम #
आज के इस दौर में किधर से गुजर रहा हूँ।
जहाँ कोई नज़र न हो वहाँ से गुजर रहा हूँ।

बड़े ही कशमकश के दौर से गुजर रहा हूँ।
पीड़ा और संताप के दौर से उभर रहा हूँ।
वक्त के साथ अपने आपको बदल लिया-
आँधी और तूफ़ान के दौर में उतर रहा हूँ।
आज के इस दौर में किधर से गुजर रहा हूँ।
जहाँ कोई नज़र न हो वहाँ से गुजर रहा हूँ।

अब सफलता के मुकाम से गुजर रहा हूँ।
विफलता का अँधेरा दूर कर उभर रहा हूँ।
वक्त के साँचे में ढाल लिया अपने आप को-
सफलता पाने को मैदान में उतर रहा हूँ।

आज के इस दौर में किधर से गुजर रहा हूँ।
जहाँ कोई नज़र न हो वहाँ से गुजर रहा हूँ।

अब कामयाबी की उड़ान से गुजर रहा हूँ।
उड़ान भर कर अब मैं बखूबी उभर रहा हूँ।
ऊँचाइयों तक उड़ने का शौक है मुझको -
इसीलिए तो मैं आकाश में उतर रहा हूँ।


आज के इस दौर में किधर से गुजर रहा हूँ।
जहाँ कोई नज़र न हो वहाँ से गुजर रहा हूँ।