# प्रमोद के प्रभाकर भारतीय,नागौर कृत काव्य कुसुम #
आज के इस दौर में किधर से गुजर रहा हूँ।
जहाँ कोई नज़र न हो वहाँ से गुजर रहा हूँ।
बड़े ही कशमकश के दौर से गुजर रहा हूँ।
पीड़ा और संताप के दौर से उभर रहा हूँ।
वक्त के साथ अपने आपको बदल लिया-...
जहाँ कोई नज़र न हो वहाँ से गुजर रहा हूँ।
बड़े ही कशमकश के दौर से गुजर रहा हूँ।
पीड़ा और संताप के दौर से उभर रहा हूँ।
वक्त के साथ अपने आपको बदल लिया-...