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भोर की कविता
आज सुबह नींद किसी अलार्म से नहीं बादल की गरज और बरसात ने खोली। यूं तो ये कल शाम से ही गरज- दमक रहा था पर बारिश भोर की पहली किरण अपने साथ ले कर आई। आंख खुलते ही किसी की याद आई, फिर उसकी एक बात याद आई और पीछे-पीछे चली आई एक कविता फिर इस कविता ने जो बैचैनी मचाई तो बाकि के काम बाद में किए , पहले बैठकर कविता लिखी।

मौसम ने इस तरह मन पर असर डाला कि सुबह की बारिश में तन तो भीगा ही मन भी ऐसा नहाया कि दिमाग की गर्मी और सीने की जलन ने बहुत आराम पाया है। फिर बारिश में भीगने में मज़ा भी है और फायदा भी। ठंडी हवाएं मन के अवसाद को उद्वेलित करती हैं और बारिश इन्हें बहाकर अपने साथ ले जाती है किसी को सफाई नहीं देनी पड़ती कि पलकें भीगी क्यों है ?
© khak_@mbalvi