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"खौफ़...एक अनकही दास्तान-1"
रात के करीब दस बजे का समय था।

हर तरफ खामोशी छाई हुई थी।
"आह..... !आह....! मैं कहाँ हूं,मैं कौन हूँ ?!"

कोलकाता शहर के आलीशान प्राइवेट सिटी हॉस्पिटल के एक बेड पर पड़ा मरीज धीरे धीरे कराह रहा था....। तीन नर्सें और एक डॉक्टर उसे चकित भाव से देखने लगे।

जहां उनकी आंखों में उसे होश में आता देख कर चमक उभरी थीं,वही हल्की सी हैरत के भाव भी उभर आए थे..।
वे ध्यान से गोरे चिट्टे, गोल चेहरे और घुंघराले बालों वाले युवक को देखने लगे,जिसकी उम्र तीस वर्ष के आस पास थी।
उसके जिस्म पर हल्के नीले रंग का ब्रांडेड सूट था और सूट  के नीचे सफेद शर्ट..।

कराहते हुए उसने धीरे धीरे आंख खोल दी...कुछ देर तक चकित सा अपने चारों तरफ का नज़ारा देखता रहा,चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे कुछ समझ न पा रहा हो। कमरे के हर कोने में घूमकर आने के बाद उसकी नज़र डॉक्टर पर स्थिर हो गई। फ़िर एक झटके से उठ बैठा था वो।

एक नर्स ने आगे बढ़ कर जल्दी से उसे संभाला, बोली - "प्लीज़ लेटे रहिये...आपके सिर में बहुत गम्भीर चोट लगी है"।

"मगर कैसे....क्या हुआ था" ?

आगे बढ़ते हुए डॉक्टर ने कहा...'आपका एक्सीडेंट हुआ था मिस्टर"। युवक ने हैरानी के साथ कहा, "एक्सीडेंट... मगर किस चीज से" ??"ट्रक से...आप कार चला रहे थे",डॉक्टर ने बताया। डॉक्टर!! क्या मेरे पास कार भी है ?

जी हां...वह कार शायद आप ही कि होगी।
हल्की मुस्कान के साथ डॉक्टर ने कहा...क्योंकि कपड़ों से आप कम से कम किसी के ड्राइवर तो नही लगते हैं।

युवक ने चौंक कर जल्दी से अपने कपड़ों की तरफ देखा
अपने ही कपड़े को पहचान न सका वो...लगभग चीखते हुए डॉक्टर से कहा "डॉक्टर ये कपड़े मेरे नही हैं"।
फिर अपने हाथों को अजनबी सी दृष्टि से देखने लगा....दाएं हाथ की तर्जनी  में एक हीरे की अंगूठी थी,बायीं कलाई में विदेशी घड़ी, अज़ीब सी दुविधा में पड़ गया वो।

अचानक ही चेहरा उठा कर उसने सवाल किया...मैं इस वक़्त कहाँ हूँ,और आप लोग कौन हैं ??
डॉक्टर ने कहा :- "सर आप इस वक़्त कोलकाता शहर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में है। ये तीनों नर्सें हैं, और में डॉक्टर गोयंका पूरा नाम डॉक्टर धीरज गोयंका, जनरल फिजिशियन विभाग से। मैं ही आपका इलाज कर रहा हूँ।

वो सब तो ठीक है मगर मैं कौन हूँ...?? इस बार उसने थोड़ा सा झल्लाते हुए सवाल किया।

क्या मतलब...?? बुरी तरह चौंकते हुए डॉक्टर गोयंका ने  अपने दोनो हाथ बेड के कोने पर रखे। और उसकी तरफ झुकते हुआ बोले...."क्या आप को मालूम नही, आप कौन हैं" ??

मैं...मैं...मैं...असमंजस में फंसा युवक केवल मिमियता रहा।
ऐसा एक भी शब्द न कह सका जिससे कि उसके परिचय का आभास हो पात।
तीनो नर्स हैरानी से उस मरीज की तरफ देख रही थीं...और डॉक्टर भी।

डॉक्टर ने उसकी आँखों मे अपनी आंखें गड़ाते हुए पूछा...याद कीजिये मिस्टर ,आपको याद नही, की आप  दमदम एयरपोर्ट के रास्ते से अपनी कार ड्राइव करते हुए कहाँ जा रहे थे ?? क्या आपको फ्लाइट पकड़नी थी...? पर हमें तो आपके समान में भी ऐसी कोई चीज़ नहीं मिली जो आपका परिचय बता सकें, कोई आईडी कार्ड नहीं, कोई दस्तावेज नहीं, ना ही पासपोर्ट वगैरह।

दमदम एयरपोर्ट??
युवक के चेहरे के भाव से ही यह पता चल रहा था,की वो डॉक्टर के किसी भी बात का अर्थ नही समझ पा रहा है ।

डॉक्टर ने स्थिति को देखते हुए तीनो नर्सो में से एक को इशारे में ही इंजेक्शन लगाने का संकेत दिया, एक ऐसी दवा जो उसके दिमाग़ का सोचना अभी कुछ देर के लिए बंद करवा दें। और वो एक लंबे वक्त के लिए बेहोश हो जाये ताकि उसके दिमाग़ का प्रेसर थोड़ा कम हो और उसे सब याद आ जाये। इंजेक्शन लगने के कुछ ही देर बाद युवक बेहोश हो गया...हां उसके मुंह से बार बार यही शब्द...