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कुकर में उबलने से पहले पढ़ लेती


लक्की लाडो

रात के बारह बज रहे थे उसका फ़ोन आया "हेल्लो" किसी ने फुसफुसा-हट भरे लफ़्ज़ों में कहा।

"हाँ, बोलो" उसने भी हौले से कहा।

"सब तैयारी हो गई क्या, सुबह चार बजे की बस है।"

"मैंने अपने कपड़ों का बैग तो पैक कर लिया है, पैसे और गहने लेने हैं।"

"अपने सब डॉक्यूमेंट भी ले लेना, हो सकता है दोनों को नौकरी करनी पड़े, नया घर संसार जो बसाना है।"

"ओके, मैं सब कुछ लेकर तुम्हें कॉल करती हूँ।"

उसने सबसे पहले माँ की अलमारी खोली, और उसमें से गहनों का डिब्बा निकाला, अपने लिए बनवाया गया मंगलसूत्र बैग में डाला, अंगूठी और झुमके पहन लिए, चूड़ियों का डिब्बा उठाकर बैग में डाल रही थी कि माँ की तस्वीर नीचे गिर पड़ी।

उसे याद आया माँ की बरसों की इच्छा थी सोने का चूड़ा पहनने की। मगर जब पापा का एरियर मिला था तो जो चूड़ा बनवाया गया वो माँ ने ये कहकर उसके लिए सम्भाल कर रख दिया था कि जब बिट्टू इंजीनियरिंग करके नौकरी लग जायेगा खूब सारे बनवा लूँगी। अभी तो तेरी शादी के लिए रख लेती हूँ, मेरी लाडो...