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जानकी जी का लठ
एक गांव में कर्मबीर और संतराम दो दोस्त रहते थे । वो शराब के नशे में धुत्त रहते थे । प्रतिदिन रात में शराब पीकर आना और गांव में हुडदंग मचाना उनकी आदत में शामिल सा हो गया था । कर्मबीर तो कुंवारा था, परंतु सन्तराम का अच्छा खासा परिवार था एक बेटी प्रिया, एक बेटा रोहित और एक बहुत सुंदर और सुशील पत्नी पुष्पा थी । सन्तराम जब भी घर जाता तो कभी बेटे को पीट देता तो कभी अपनी पत्नी को । हाँ, वो अपनी बेटी को नही पिटता था । परंतु हर रोज घर मे मार पिटाई से पूरा परिवार परेशान था । पड़ौसी भी परेशान थे । सन्तराम के भाई भी थे, परंतु वो सब उससे अलग रहते थे, रहे भी क्यों ना, सन्तराम की तो हरकतें ही ऐसी थी ।
गांव के लोगों के साथ साथ बच्चे भी परेशान थे, जैसे रात में पढ़ने बैठते उनका रोज का शराबी प्रवचन शुरू हो जाता था । और तो और किसी का भी नाम लेकर गाली देना शुरू कर देते थे । गांव वाले भी उनके बच्चों को देखकर छोड़ देते थे कि कैसा भी है, बच्चो के सिर पर पिता का हाथ तो है । और जब उनसे दिन में मिलो और कुछ कहो तो चुपचाप सुन लेते थे, यहां तक कि माफ़ी भी मांग लेते थे, पर जैसे ही रात होती उनका वही नाटक फिर से शुरू हो जाता था । और रात में सबसे पहले उसे ही गाली देते थे जिससे दिन में माफी मांगी थी । वैसे बिना शराब पिये वो किसी को कुछ कहते भी नही थे ।
सन्तराम तो घर वालों के साथ अजीब अजीब हरकतें करता था । कभी कभी तो रात में 12 बजे आएगा और पत्नी से पूछेगा, आज रोहित ने आज पढ़ाई की थी क्या ? पत्नी जो भी जवाब दे पर होना वही था जो वह सोच कर आया है, और रात में ही रोहित को उठा कर बोलेगा आज पढ़ाई नही की, पढ़ाई शुरू करो अभी और वो भी मेरे सामने बैठकर । माँ- बेटे बड़े परेशान थे और पत्नी के साथ तो और भी अजीबोगरीब हरकतें करता था । सर्दियों के दिन थे और सन्तराम पूरी तरह से नशे में धुत्त था और पूरी तरह से मिट्टी से सना हुआ था, बदबू मार रहा रहा था, शायद किसी गंदी नाली में गिरकर आया था । पर सन्तराम तो सन्तराम था घर आकर पत्नी से बोलता है कि, तुमने आज स्नान नही किया है, तुझमे बदबू आ रही है जाओ स्नान करके आओ । बेचारी पुष्पा को समझ नही आ रहा कि इतनी रात गए और इतनी ठंड में ठंडे पानी से स्नान करे तो करे कैसे । खैर, किसी तरह नहाने का झूठा नाटक करके अपना बचाव किया ।
पर कहते हैं की ऊपरवाले का भी कोई भरोसा नही कब और किस सूरत में आ जाये । सन्तराम के मामले में भी भगवान जानकी जी की लाठी के रूप में आये । हुआ यूँ कि एक दिन सन्तराम और कर्मबीर ने दिन में ही शराब पी ली, और एक बोतल हाथ मे लेकर गांव के सबसे पुराने भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के सामने बने चबूतरे पर बैठ गए और गाली बकना शुरू कर दिया । मंदिर के सामने ही राजाराम का घर था । घर मे पत्नी जानकी, बेटा करन और बुढ्ढी मां रेवती रहती थी । रेवती दादी भी कुछ कर्मबीर और सन्तराम जैसी ही थी बस वो शराब नही पीती थी । दादी जी का भी यही काम था कभी भी किसी का नाम लेकर भला बुरा कहना शुरू कर देती थी । उस दिन भी अपने घर के बैठक में बैठी कुछ बड़बड़ा रही थी, ऐसा शायद उनकी उम्र का नतीजा था । और दादी माँ की आवाज बाहर बैठे सन्तराम और कर्मबीर को सुनाई दी । अब उन दोनों को पता नही क्या सूझा, और वो दादी माँ के पास आकर बैठ गए, उनसे बाते करने लगे कुछ तो नशे में क्या बोल रहे थे पता नही, और ऊपर से दादी माँ को सुनता कम था । जब तक सन्तराम और कर्मबीर बाते कर रहे थे तब तक तो दादी माँ ने कुछ नही कहा, पर जैसे ही सन्तराम ने दादी को शराब की बोतल दिखाई और मजाक में बोला, दादी माँ शराब पीओगी ? सन्तराम ने बोला क्या, ये तो दादी को सुनाई न दिया, पर जैसे ही बोतल उनके मुँह के पास में आई तो चिल्लाना शुरू कर दिया । बेशर्म शर्म नही आती, तुम्हे ? अपनी माँ को भी ऐसे ही बोतल दिखाता है ? और दादी माँ ने अपना कैसेट शुरू कर दिया । सन्तराम को नशे में समझ नही आ रहा था कि उसने क्या कर दिया ? और हिलते डुलते दोबारा उसी चबूतरे पर बैठ गया, कर्मबीर अपने घर की तरफ चला गया । अब जब दादी माँ की आवाज उनकी पुत्रवधु जानकी को सुनाई दी, तो वो दौड़कर दादी के पास आई ।
जानकी - क्या हुआ मां जी ?
दादी माँ - वो बेशर्म सन्तराम आया था, बदतमीजी कर रहा था मेरे साथ ?
जानकी - हुआ क्या ? क्या बोल दिया उन्होंने आपको ?
दादी माँ - वो बेशर्म अपनी अपनी माँ को भी ऐसे ही पूछता है क्या ?
जानकी जी को दादी माँ की बाते सुनकर गुस्सा आने लगा, पर दादी माँ भी बात पूरा नही करती, बस बीच मे सन्तराम को भला। बुरा कहना शुरू कर देती । जानकी जी एक तो इस बात से गुस्से में थी कि पता नही सन्तराम ने क्या कहा होगा दादी माँ को, और ऊपर से दादी माँ अपनी बात भी नही बता रही थी ।
जानकी - अरे मां जी कुछ बताओगे भी या फिर सिर्फ गाली ही दोगी ।
दादी माँ - हाँ, तुझे भी मेरी ही बाते बुरी लगती है । मुझे ही बोल लो तुम भी उस सन्तराम को मत कुछ कहना ।
अब जानकी का गुस्सा तो समझो सातवे आसमान पर पहुंच गया और गुस्से में दादी माँ से बोली अरे माँ जी कुछ बताओ तो सही उस सन्तराम ने कहा क्या ?
दादी माँ - कहेगा क्या मुझे शराब पिला रहा था मेरे मुंह पर शराब की बोतल लगा रहा था बेशर्म ।
इतना सुनते ही जानकी जी ने इधर उधर देखा और एक मोटा सा लठ दिखाई दिया उसे ही साथ ले लिया और चली गयी सन्तराम की पिटाई करने । सन्तराम तो बेसुध सा पड़ा था उसी चबूतरे पर । शायद कुछ होश में होता तो वंहा से चला जाता । जानकी जी आयी और ना कोई सवाल किया और ना कोई जवाब, बस आते ही सन्तराम की पिटाई शुरू कर दी । सन्तराम फिर भी बेसुद सा पड़े- पड़े मार खाये जा रहा था । उसे समझ नही आ रहा था कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? शायद वह सोच रहा था कि उसने कुछ ऐसा कर दिया, जो नही करना चाहिये था । या वो होश में ही नही था । पर उसके बाद जो हुआ उससे लगता है कि सन्तराम शायद ये सोच रहा था कि उसने जो भी किया था वो गलत था, और वो शायद उस शराब की वजह से हुआ था । क्योंकि उसके बाद सन्तराम ने कभी शराब पीना तो दूर छुआ तक नही ।
कर्मबीर ने शराब नही छोड़ी और कुछ महीनों बाद ही शराब के नशे में ही कर्मबीर की मृत्यु जो गयी । शायद उस दिन कर्मबीर भी वहीं उस चबूतरे पर होता और जानकी जी से एक दो लठ खा लिए होते । शायद शराब उसी दिन मार गयी होती, और कर्मबीर आज जिंदा होता ।

🖋️SK
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