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कविता जी
कविता जी जिनका सम्पूर्ण जीवन खाना बनाने और बच्चे पालने में ही गुज़र गए। पहले अपने बच्चे फिर नंद के बच्चे फिर देवर के बच्चे और फिर अपने बच्चों के बच्चे पालते पालते उनकी आधी उम्र निकल गई ।पाक कला और ललित कला की धनी कविता जी साक्षात मां भगवती का रुप लगती है।
माता सरस्वती उनकी कलाओं में और माता लक्ष्मी उनकी व्यवहारों में सदा विराजमान रहती हैं।ममता की ऐसी प्रतिमा केवल फिल्मों और किताबों में ही पढ़ने देखने को मिलता है। अपने नाम के अनुरूप ही अपने सरल व्यवहार और मृदुल स्वाभाव से सबको आकर्षित करने के साथ-साथ अपना बना लेती हैं। मगर उनको कभी किसी ने अपना नहीं समझा। क़िस्मत की बात है।आज से लगभग 40 और 42 साल पहले उनका लव मैरेज हुआ था। वो भी किसी की दिल ओ जान थी।कोई उन्हें भी अपनी धड़कनें कह कर पुकारा करता था।वो अपने पति को पहली नज़र में ही इतना भा गई थी कि उन्होंने कविता जी से विवाह की हठ पकड़ ली थी।
दरअसल कविता जी उस गांव किसी फैमिली फंक्शन में सम्मिलित होने आए थी। और यही कि होकर रह गई। एक दिन कविता जी अपने रिश्तेदार के साथ कहीं घूमने जा रही थी।रास्ते में ही उस सज्जन का घर पड़ा जिनके साथ कविता जी का विवाह हुआ। जब उन्होंने कविता जी को पहली बार देखा था तभी उनकी सुंदरता पर मंत्र मुक्त हो गए थे। कोई भी देखे तो अपना सब कुछ न्योछावर कर दे ऐसी सुंदरता पाई थी उन्होंने..!गोरा रंग, छरहरा बदन,स्टैंडर्ड हाइट काली सुंदर आंखें,लंबे घूंघराले बाल , सुर्ख लाल गुलाब की पंखुड़ियां से होंठ और वीणा की झंकार सी आवाज , उम्र 11 और 12 साल के आसपास किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी ।
उस सज्जन ने यह बात अपनी मां को बताई।
उनकी मां ने अपने यहां काम करने वाली महिलाओं से पता लगाने को कहा वह कौन है इस गांव की तो नहीं लगती है। तो यहां किसके घर आई है कोई रिश्तेदार है क्या यहां उसका वगैरा-वगैरा..??
कामवाली ने सारी जानकारी इकट्ठा करके उन्हें बता दी। फिर उन्होंने कविता जी की बुआ को बुलावा भेजा और वह उनसे मिलने अगले दिन आई। उन्होंने बुआ जी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। बुआ जी तो फूली ही नहीं समा रही थी।उनकी खुशियां छुपाए नहीं छुप रही थी ।वह कहने लगी मेरी भतीजी की ऐसी किस्मत जो वह आपके घर की बहू बने ।इस रिश्ते में तो इंकार की गुंजाइश ही नहीं है। मैं आज ही अपने भाई को बुलवा भेजती हूं आकर सब बातचीत पक्का कर लेंगे। हालांकि दोनों घराने में जमीन आसमान का फर्क था मगर फिर भी अपने बेटे के जिद्द के आगे परिवार वाले झुक गये और ये शादी हुई। दहेज नहीं मिलने के कारण और ऊंचे खानदान के नहीं होने के कारण ससुराल में हमेशा ही कविता जी मजाक की पात्र बनती रही। परेशानियां सहती रही। कभी सास ससुर तो कभी ननद और देवर उसके बाद बच्चों ने अपना एक अलग राग अलापना शुरू कर दिया।
बढ़ती उम्र और बदलते रिश्तों के साथ उनके पति का व्यवहार भी बदलता रहा। और बच्चे तो बड़ों से ही सीखते है तो उनकी बेटियां काम में उनका हाथ जरुर बंटा देती थी मगर उन्हें वह इज्जत वह सम्मान कभी नहीं देती थी जो उन्हें मिलना चाहिए था ।मगर उनकी बेटियां जब अपने ससुराल गई तब उसे अपनी गलतियों का एहसास हो गया। और उसके बाद वो अपनी मां की कद्र और इज्जत दोनों ही करने लगी।मगर उनके बेटे और बहू आज तलक नहीं सुधरे"मगर फिर भी कविता जी अपने बेटे और बहू की शिकायत एक लफ्ज़ भी सुनना पसंद नहीं करते हैं। आज भी तीन-तीन बहूओं के होते हुए भी अपने घर का सारा कामकाज वह स्वयं देखी है। सुबह से लेकर शाम तक किसी न किसी काम में उलझी रहती है। और बीच-बीच में बेटे बहू का ड्रामा वह अलग से रहता है। सोचती हूं तो कांप जाती हूं इतना कुछ कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है। इतनी सहनशक्ति किसी में कैसे हो सकता है..?? कभी उनसे पूछता हूं तो कहती है जिंदगी सब कुछ सिखा देती है। आगे मुस्कुरा कर अपना हर ग़म हर दर्द अपने सीने में दबाकर रख लेती है। न जाने किस मिट्टी की बनी है.....? अपने बच्चों के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं सहा.....? अपने लिए तो कभी उन्होंने जिया ही नहीं हमेशा सबको आगे रखती और स्वयं पीछे रहती हैं त्।याग तपस्या बलिदान की ऐसी मूरत" शायद ही कहीं होगी दूजी सूरत"
अगर बारिकियों में जाए तो उनकी जीवनी पर एक मूवी बन सकती है।
मगर उन्होंने कभी उफ्फ तक नहीं किया...!
ससुराल में घर वाले तो कभी उनकी तारीफ नहीं करते,मगर मुहल्ले और गांव के लोग जिनका आना-जाना उनके घर में रहता था वह लोग उनकी प्रशंसा करते हुए थकते नहीं थे।आसपास के कई गांवों में लोग उनके रुप और गुणों की प्रशंसा करने लगें। गांव की बहू बेटियां उनसे पाक कला और ललित कला सीखने आती थी।
यहां तक की अपनी शादी में मेहंदी भी कविता जी से ही लगवाती थी,हेयर स्टाइल भी इन्हीं से करवाती थी।
पर उन दिनों ना तो इंटरनेट था और ना कैमरा जो हर एक चीज को कैद करके रखा जा सके। बड़े घर की बहू थी पैसे लेना नौकरी करना उनके शान के खिलाफ थी। नौकरी से ध्यान आया उन्हें कॉलेज में जॉब भी मिली थी मगर उन्होंने अपने परिवार की खातिर वह भी छोड़ दी।
जिस कारण कविता जी का वो अनुपम अप्रतिम और अलौकिक हुनर दब कर रह गया। उनके जिंदगी में बहुत उतार चढ़ाव आया मगर उन्होंने स्वयं को कभी टूटने नहीं दिया।हर परिस्थिति में संयम से काम लिया ।
शायद कविता जी जीवन में सुख के केवल 11 बसंत ही देखें होंगे वह भी तब जब वो अपनी नानी और मामा मामी के साथ ननिहाल में रहती थी। 11 वर्ष की उम्र में ही वह अपने फुआ के साथ उनके ससुराल किसी फंक्शन में आई थी और आई क्या ऐसी आई की बस वही की होकर रह गई ।इस फंक्शन के दौरान ही उन्हें लड़के वालों की तरफ से प्रपोजल मिला और कविता जी की बुआ ने बात आगे बढ़ाई अपने भैया भाभी को इस रिश्ते की जानकारी दी । देखते ही देखते रिश्ता तय हो गया और शादी की तारीख भी पक्की कर दी गई। किसे पता था की गुड्डे गुड़ियों का ब्याह रचाने वाली कविता जी इतनी छोटी सी उम्र में स्वयं भी दुल्हन बन जाएगी। कविता जी उम्र से पहले ही पत्नी और मां दोनों ही बन चुकी थी। जिंदगी भी कितनी अजीब होती है जो हम कभी सोच ही नहीं पाते हैं। हमेशा हमारे आगे वहीं आकर खड़ी हो जाती है। जिंदगी भी हमें क्या-क्या रंग दिखाती है। कभी हंसाती कभी रुलाती कभी आंसू भी बहा नहीं सकते कुछ ऐसी सजा सुनाती है। अपने परिवार और बच्चों के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया मगर फिर भी उनके बच्चे किसी लायक नहीं हुए।
लोग अक्सर कहते हैं बच्चे अपने मां-बाप से ही सीखते हैं अगर ऐसा होता तो कविता जी के बच्चे कभी वैसे नहीं होते जैसे अभी हैं ।रंग रूप शिक्षा दीक्षा और गुण कुछ भी तो नहीं मिलता कविता जी से उनका। वास्तव में कविता जी की सहनशीलता और हिम्मत की तो दात देनी पड़ेगी। तीन-तीन बच्चों के होने के बाद उन्होंने 12वीं पास की और वह आगे भी पढ़ना चाहती थी मगर परिवार के सपोर्ट नहीं मिलने के कारण सब ठप्प पड़ गया। उनकी हैंडराइटिंग इतनी सुंदर थी है की देखने वाले आंखें फाड़ फाड़ कर बस देखते ही रह जाते हैं। कोई कंप्यूटर भी लिख नहीं सकता वैसा। सिलाई कढ़ाई बुनाई चित्रकारी पेंटिंग इत्यादि अनेक गुणों की खान है हमारी कविता जी पर उन्हें इस बात का कभी कोई घमंड नहीं आया।जिंदगी ने तो उन्हें बहुत कुछ दिया अगर कुछ नहीं मिला तो वो है सुख और सुकून उन्हें कभी नसीब नहीं हुआ। पर उन्होंने फिर भी कभी शिकायत नहीं की बस नदियों सी चुपचाप बहती रही।
उनकी एक आदत थी डायरी लिखने की बीतते समय के साथ वह आदत भी जाती रही और साथ ही उन्हें डायरी के पन्नों में बंद होकर रह गई उनकी खूबियां और कलाकृति भी...!!
किरण