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मनमोहक प्रसंग
*मनमोहक प्रसंग: जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो*

*🙏बेटी की चूड़ी🙏*

*बरसाने में एक सेठजी रहते थे। उनके कई कारोबार थे, तीन बेटे तीन बहुएँ थी,*

*सब के सब आज्ञाकारी थे, लेकिन सेठजी के बेटी नहीं थी, यही अभाव उन्हें खलता था। यह चिंता संतों के दर्शन से कम हुई।*

*संत बोले मन में जो अभाव हो उस पर भगवान का भाव स्थापित कर लो।*

*सुनो सेठ तुमकू मिल्यो बरसाने का वास, यदि मानो राधे सुता काहे रहो उदास।*

*सेठ जी ने राधा रानी का एक चित्र मँगवाया और अपने घर में लगा कर पुत्री भाव से रखते।*

*रोज सुबह उठ कर राधेराधे कहते भोग लगाते और दुकान से लौट कर राधेराधे कहकर सोते*

*तीन बहू बेटे हैं घर में, सुख सुविधा है पूरी, संपति भरी भवन में रहती, नहीं कोई मजबूरी, कृष्ण कृपा से जीवन पथ पे आती न कोई बाधा, मैं हूँ पिता बहुत बड़भागी, बेटी है मेरी राधा।*

*एक दिन एक मनिहारी चूड़ी पहनाने सेठ के अहाते में आई और चूड़ी पहनने की गुहार लगाई। तीनों बहुएँ बारी बारी से चूड़ी पहन कर चली गयीं।*

*फिर एक हाथ और बढ़ा तो मनिहारिन ने सोचा कि कोई रिश्तेदार आया होगा उसने चूड़ी पहनाई और चली गयी।*

*सेठजी की दुकान पर पहुँच कर पैसे माँगे और कहा कि इस बार पैसे पहले से ज्यादा चाहिए। सेठजी बोले कि क्या चूड़ी मँहगी हो गयी है?*

*मनिहारिन बोली, नहीं सेठजी आज मैं चार लोगो को चूड़ी पहना कर आ रही हूँ।*

*सेठ जी ने कहा कि तीन बहुओं के अलावा चौथा कौन है? झूठ मत बोल, यह ले तीन का पैसा। मनिहारिन बेचारी तीन का पैसा ले कर चली गयी।*

*सेठजी ने घर पर पूछा कि चौथा कौन था जिसने चूड़ी पहनी हैं? बहुएँ बोली कि हम तीन के अलावा तो कोई भी नही था।*

*रात को सोने से पहले सेठजी पुत्री राधारानी को स्मरण करके सो गये। नींद में राधा जी प्रगट हुईं, सेठजी बोले "बेटी बहुत उदास हो, क्या बात है?*

*बृषभानु दुलारी बोलीं, "तनया बनायो तात, नात ना निभायो है..चूड़ी पहनि लीनी मैं, जानि पितु गेह किंतु, आप मनिहारिन को मोल ना चुकायो है।*

*तीन बहू याद किन्तु बेटी नही याद रही, नैनन श्रीराधिका के नीर भरि आयो है।*

*कैसी भई दूरी कहो कौन मजबूरी हाय, आज चार चूड़ी काज मोहि बिसरायो है???*

*सेठजी की नींद टूट गयी पर नीर नही टूटा, रोते रहे, सबेरा हुआ, स्नान ध्यान करके मनिहारिन के घर पहुँच गये। मनिहारिन देखकर चकित हुई।*
*सेठ जी आंखों में आँसू लिये बोले धन धन भाग तेरो मनिहारी..तोसे बड़भागी नही कोई, संत महंत पुजारी, धन धन भाग तेरो मनिहारी.."मैने मानी सुता किन्तु निज नैनन नहीं निहारी, चूड़ी पहन गयीं तेरे हाथन ते श्री बृषभानु दुलारी। धन धन भाग तेरो मनिहारी..बेटी की चूड़ी पहिराई लेहु, जाऊँ तेरी बलिहारी, हाथ जोड़ बिनती करूँ, क्षमियो चूक हमारी। "जुगल नयन जलते भरे मुख ते कहे न बोल, "मनिहारिन के पाँय पड़ि लगे चुकावन