भावना
अपनी बुआ के ब्याह के लिए भागदौड़ करते करते प्रेम के दोनों पैरों में अत्यधिक पीड़ा हो रहा था और वो घर के सीढ़ियों पर चित् होकर बैठ गया। खुद से पैरों की मालिश करने लगा क्योंकि सारे घरवाले ब्याह के कार्यों में व्यस्त थे।
"अरे प्रेम क्या हो गया तुम्हारे पैरो में।" किसी ने छत से नीचे आते हुए प्रेम को पैरों का मालिश करते हुए देख कर आश्चर्यचकित स्वर में कहा।
प्रेम पीछे मुड़ा तो देख स्नेहा हाथों में कुछ कपड़े लिए सीढ़ियों से उतर रही थी।
"स्नेहा तुम?"
"हां मैं क्यूं नहीं होना चाहिए।"
"अरे नहीं मेरा कहने का मतलब यह नहीं था, तुम कब आई।"
"तुम्हे अपने कार्यों से फुर्सत मिले तब न पता चले कि कौन कौन घर में आया है।"
"क्या करें ये ब्याह में भागदौड़ इतना होता है कि समय ही नहीं मिलता...
"अरे प्रेम क्या हो गया तुम्हारे पैरो में।" किसी ने छत से नीचे आते हुए प्रेम को पैरों का मालिश करते हुए देख कर आश्चर्यचकित स्वर में कहा।
प्रेम पीछे मुड़ा तो देख स्नेहा हाथों में कुछ कपड़े लिए सीढ़ियों से उतर रही थी।
"स्नेहा तुम?"
"हां मैं क्यूं नहीं होना चाहिए।"
"अरे नहीं मेरा कहने का मतलब यह नहीं था, तुम कब आई।"
"तुम्हे अपने कार्यों से फुर्सत मिले तब न पता चले कि कौन कौन घर में आया है।"
"क्या करें ये ब्याह में भागदौड़ इतना होता है कि समय ही नहीं मिलता...