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आख़िरी ख़त
दोनों को मिले एक साल हो चुके थे ,अब तक ये सिलसिला बस एक या दो मुलाकातों में ही ठहरा था,कुछ किस्से मिलन के कुछ अश्क जुदाई के ,ये सफर हर प्रेम कहानी की तरह ही हंसी था जिसमें दो लोग दुनिया के हर ज़ख्म दो पल के लिए किसी की बाहों में आके भूल जाते हैं, उन दोनों की मुलाक़ात भी कुछ हसीन लम्हों में कैद एक परिंदे कि तरह थी। इनकी कहानी की शुरआत हर प्रेम कहानी की तरह खुशनुमा थी लेकिन इन दोनों का अंत उतना ही दर्दनाक था जितना कभी शिरीन-फरहाद ,हीर-रांझा या बाकी मुहब्बत के मुसाफिरों का । मिले तो वो पहले भी थे बाहों में बाहें डाल के एक दूजे के मगर आज बात कुछ अलग थी ,लाल जोड़े में अर्पिता उतनी ही खूबसूरत लग रही थी...