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Pehli Barish (पहली बारिश)
कल शाम हमारे शहर में मौसम की पहली बारिश हुई। चारों ओर वो सौंधी खुशबू, पेड़ो की हलचल और शांत माहौल देखते ही बन रहा था। मानो आज तो कुदरत भी झूम उठने की फिराक में है। नज़ारा देखकर रहा नही गया, बाहर निकली और टहलने लगी। तभी ध्यान नीचे की ओर गया, देखा की दिन भर की धूप से त्रस्त होचुकी धारा पानी को सोख तो रही है मगर गीली नही हो रही। बारिश की बूंदे गिरती, ज़मीन सोख कर अपने दृढ़ रूप में आ जाती। फिर एक और बार, और फिर एक और बार।
ये बार बार हो रहा था। अब मै इसे देखते देखते खो गई। थोड़ी देर बाद जब धरती का वो संकल्प टूटा, तो वह गीली होने लगी। धीरे धीरे धरती की वह मिट्टी , कीचड़ में परिवर्तित हो गई।

दोस्तो इस दृश्य को देखकर मुझे ये लगा की हमारे साथ भी तो कुछ ऐसा ही होता है। हम किसी को अपने जीवन में स्थान देते हैं। उसे अपना हिस्सा बनाते हैं, लेकिन वो हमें खिलौना समझकर हमारे दिल से खेलता है, लेकिन हम में ज्यादा कुछ फर्क नही आता। वह ऐसा एक बार करता है, दो बार करता है, फिर येबुस्की आदत हो जाती है। इसके पश्चात हम टूट जाते हैं। बिखर कर इतने बुरे हो जाते हैं की बाकी सब हमें नालायक समझने लगते हैं, ठीक उसी तरह जैसे मिट्टी कीचड़ में परिवर्तित होती है। हम एक हस्ते खेलते व्यक्ति से एक पत्थर बन कर रह जाते हैं।💔🥀
© ann_always