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कसूर किसका -1-
बस बड़ी तेजी से घर की ओर चली जा रही थी।शालिनी को आज समझ ही नहीं आ रहा था कि वह अब घर पहुंच कर अपने मम्मी, पापा का सामना कैसे करेगी।उसका कोई कसूर भी तो नही था।यह केवल एक एक्टिविटी का हिस्सा ही तो था।कालेज से उसके घर पहुंचने में बीस मिनट लगते थे।आज के घटनाक्रम को वह सोच ही रही थी कि कब समय बीत गया,इसका उसे पता ही नहीं चला।
गांधीनगर, की सभी सवारियां गेट पर पहुंचें। कंडक्टर ने आवाज लगायी।
गांधीनगर आ चुका था।बस स्टैंड से मात्र तीन सौ मीटर की दूरी पर उसका घर था।
धीरे धीरे वह घर की ओर वह चल पड़ी।घर पहुंच कर वह सीधे पलंग पर जाकर लेट गयी।न चाहते हुए भी दिन का सारा घटनाक्रम उसके सामने आ गया।शालू बेटा, क्या हो गया?आज इतना अपसेट क्यों हो?क्या बात है?मां शालिनीको प्यार से शालू कहती थीं।
कुछ नहीं मां,बस आप पापा को कहना,कि मैरी कोई गलती नहीं है।ऐसा कहते कहते वह फफक फफक कर रो पड़ी।
रोते नहीं हैं, हुआ क्या है, साफ साफ बताओ?कहते हुए मां उस के नजदीक बैठ गई,और सिर सहलाने लगी।
ट्रन,ट्रन, ट्रन,कालबैल बजी,देखो कोई आया है।
कहते हुए मां...