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अब्बू आप याद आते हैं
जब भी दिसंबर आता आप कहते अब्बू कि बाबू ठण्डी अब किसी तरह पार हाे जाये आप 3 साल से दिसंबर पूरा हमारे पास लखनऊ में रहते थे जब से दिसंबर आया आप की हर वक़्त याद आती है पूरे घर में आपकी यादे बिखरी पड़ी है ऐसा लगता है अभी आप आवाज़ दाेगे की बेटा शानू जरा इनहेलर लाओ ताे जरा दावा बनाओ ताे जरा चाय पिलओ ताे जरा आज कुछ चटपटा लाओ ताे ऐसी तमाम बातें हैं कि एक एक बात जब याद आती है ताे........ आखिर में जब आप कहते बेटा जरा कसरत कर लाे ताे कसरत से मुराद थी की जरा हाथ पैर दबा दाे बेटा
और दबाते वक़्त आप का वाह बेटा वाह बेटा कह कर ये बताना की हम जग रहे हैं..
अब्बू आपका ये कहना की दाेबारा नहीं मिलेगा बेटा ये वक़्त वाकई अब्बू अब सच है कि मैं इतने मन से किसी की सेवा न कर पाऊ जिस तरह आपके साथ रहता था

अब्बू अभी कुछ साल और रह लेते आप ताे कुछ और जी लेता ज़िन्दगी
लेकिन निजाम ए कुदरत है ये हमारा इसपर काेई बस नहीं अल्लाह से दुआ है की आप की मगफिरत फरमाये और जन्नत में हमारी मुलाकात हाे हमें खुशी हाेगी दाेबारा मिलने से