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आत्म संगनी ओर सुहाग की निशानी
आत्म संगनी ओर सुहाग की निशानी


मेरी आत्म संगनी अब मेरी जिंदगी का एक एहम हिस्सा बन चुकी थी ,उसको क्या कब और कैसा पहनना है क्या नही पहनना,क्या ठीक नही है क्या अच्छा लगता है अब मेरी मर्जी पर आधारित हो गया था। ऐसे में उसकी पसंद न पसंद का भी मेरी जिंदगी का महत्व बढ़ गया था। उसकी मेरे प्रति आस्था ही भावना का ही परिणाम था कि मीलों दूर रहकर भी हम अब एक थे। यह बात अलग थी कि आज तक भौतिक रूप से हम मिले नही है लेकिन मानसिक रूप से हम एक जान हो चुके थे।
अक्सर उसका मुझे "जानू"कहना मेरे तन बदन में जल तरंग बजा देता था।
त्यौहार आने से पहले उसकी अनमोल इनायतें मेरे दर पर आना किसी त्यौहार से कम नही थी। मैने भी अपनी प्रियसी को एक अदना सा पैगाम भेजा जिसे उसने सुहाग की निशानी समझ कर अपने शरीर पर यूं धारण कर लिया जैसे चंदन के पेड़ पर लिपटा कोई खुशबू का सौदागर।
उसके खूबसूरत हाथों में मेरे नाम की सजी मेंहदी का रंग उस पर सुहाग की निशानी का होना किसी सुहागन के लिए शुभ संकेत से कम नही था। उसका मुझे आत्मिक रूप से अपना स्वामी स्वीकारना इस भौतिक युग में किसी वरदान से कम नही था। उसका सुहाग की निशानी को धारण किए हुए बार बार छूमना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा उपहार था । मैं ऋणी हूं उसकी चाहत का ,उसके समर्पण का उसकी मुहब्बत का उसके टूटकर मुझमें समाने का।