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म से ममता, प से पराक्रम!
कार्यालय से निकलते- निकलते आज फिर देरी हो गई। माल रोड की तरफ़ मैं पैदल ही हो लिया। शिमला की ठंड में शाम को पैदल चलने का अपना ही आनंद है।

सड़क के किनारे एक मूंगफली के खोमचे पर मैं रूक गया। मूंगफली की टोकरी पर मिट्टी की छोटी हंडिया रखी थी जिसमें आग जल रही थी।
"बीस रूपए की मूंगफली डाल दो भईया।", कह कर मैं हंडिया पर अपने हाथ गर्म करने लगा। तभी सामने से आते हुए पिता- पुत्र की बात-चीत पर मेरा ध्यान बरबस ही चला गया। पुत्र शायद तीन वर्ष का रहा होगा।

" पापा, मेरे हाथ ठंड से कुल्फ़ी बन गए हैं। कुछ करो न।", पुत्र ने पिता से कहा।

"आपके हाथ हम कुल्फ़ी नहीं बनने देंगे, बेटे।"—कहते हुए पिता घुटनों के बल बैठ गया और पुत्र के दोनों हाथों को गर्माहट देने के लिए अपने हाथों में लेकर मलने लगा।पुत्र भी टुकुर-टुकुर कभी अपने हाथों को और कभी अपने पिता की आंखों में देख रहा था।

फिर पिता ने पुत्र को गोदी में उठा लिया और हंडिया के पास आकर उसके हाथों को ताप देने लगा। अचानक बेटे को न जाने क्या सूझा। पिता के गले में अपनी दोनों बाहें डालते हुए चिपक गया और कहने लगा—" देखो पापा, मेरे हाथ बिल्कुल गर्म हो गए। आप बहुत अच्छे हो।आई लव यू, पापा।" पिता ने मुस्कुराहट से उसकी बात का जवाब दिया।

मैं उन्हें जाते हुए देख रहा ‍था और सोच रहा था कि अच्छा है सामाजिक वर्जनाएं धीरे-धीरे ही सही मगर टूट रही हैं। पिता भी मां की भूमिका निभा रहे हैं और छोटा सा बच्चा भी जानता है कि भावनाओं के प्रदर्शन पर भी धन्यवाद किया जाता है।

अन्यथा 'म' से मां और 'म' से ही ममता होता है और वही सच्चा भाव माना जाता है। और 'प' से पिता और 'प' से पराक्रम ही हो सकता है। पिता ममता दर्शाए तो अजीब माना जाता है और मां पराक्रम की बात करें तो भी अजीब माना जाता है। न जाने कब और क्यों ऐसा बंटवारा हो गया कि अमुक भावना मां प्रदर्शित करेगी और अमुक पिता!

मूंगफली खाते, सोचते-विचारते मैं भी घर की और चल दिया।

—Vijat Kumar
© Truly Chambyal