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आम आदमी 🗿
किसी ने पूछा : तुम्हें पता है कि आम आदमी कौन है?
मेरा जवाब था नहीं, पर तुम्हें पता है तो बताओ।

आम आदमी वो शख़्स है जो हड्डियों तक जमा देने वाली ठंड और इस घनी धुंध में भी रोज़ अपनी साइकिल या मोटर साइकिल पर 50-60 किलोमीटर लंबी दूरी तय करता है और मेहनत करके, कुछ कमा के अपने छोटे से संसार को चलाता है।

उसे ठंड का एहसास भी होता है, उसे सर्द बेदर्द हवाएं भी लगती हैं, उसे दर्द भी होता है,वो थक भी जाता है लेकिन इसके बावजूद वो अपनी तकलीफ़ का ज़िक्र तक नही करता।
ये सब होने के साथ ही वो अपनी ख्वाहिशात को दबा कर के अपने घर वालों की ज़रूरियात को पूरा करने से घबराता नही है।

पर हां, कभी- कभी ऐसा लगता है कि वो ज़िंदगी जी नही रहा,वो बस ज़िंदगी गुज़ार रहा है। कभी न कभी वो भी सोचता होगा कि इतनी कम उम्र में इतनी सारी जिम्मेदारियों को इसके सर ही क्यों डाला गया है? काश! वो भी कभी रात को गर्म कंबल ओढ़े, सारी दुनिया से बेखबर एक सुकून की नींद सो पाता।

और बस! यही ख्याल के वक्त कभी किसी के लिए एक जैसा नहीं रहता, उसे आगे बढ़ने की ताक़त और हिम्मत देता है। वो इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ है कि ज़िंदगी से हार जाने का विकल्प उसके पास मौजूद ही नही है। वो जानता है तो बस ज़िंदगी के हर मुश्किल मरहले से लड़कर, भिड़कर और निपटकर ही निकालना। और इन्हीं सारी खींचतान के बीच वो चेहरे पर मुस्कान लिए हुए अपनी ही धुन में मगन आगे ही आगे बढ़ता रहता है।

"बस यही शख़्स वो आम आदमी है।"


© Mojiz Kalam