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कुनबा- 1.3 गुस्सैल लौंडिया की करतूत
घोंगा:-अपनी लौंडिया को सम्भालो पहले। मेरा घर उसका कोठा नहीं है। जब देखो मुह उठा के चली आती है लौंडे घुमाती हुई। अलग मोगड़े पैदा कर रखे हैं तुमने भी।

शर्माजी:- सुन ले पंडतायन अपनी लाड़ो की करतूत। पूरे परिवार का नाम मूत में मिला ले रख दिया है इस कुलच्छनी ने। सुसरा एक आदमी नहीं बचा पूरे मुरादनगर में जो उसका उल्हाणा ना लेके आया हो। सच सच बता दे पंडतायन, मेरी ही औलाद है वो? कहीं ऐसा तो नहीं की...

पन्डतायन :- खबरदार जो एक लफ्ज़ भी और निकाला तो। और तू घोंगे, मेरे दहेज की सम्पत्ती है तू, रगड़ रगड़ के तेरे से काम लूँगी मैं, जब तक मेरी सांस चलेंगी तब तक। इसी सौदे पे आया था तू मेरे साथ। हर महीने का जो मुआवजा आता है मेरे मायके से उसपे जीता है तू। ज्यादा सर पे मत चढ़। तू भी कोई दूध का धुला ना है। सारा मोहोल्ला जानता है कि संतबलि की लुगाई के पीछे राल टपकाता फिरता है तू।

और तुम, ये आर्मचेयर पे बैठ कर दिन भर भांग पी के जो कटाक्ष कटाक्ष खेलते हो, उसे खुद तक ही रखो। खबरदार जो मुझे अपने व्यंग का हिस्सा बनाया तो। पता नहीं कौन से कर्म किये थे जो भंगचियों के खानदान में ब्याह कर लिया। अच्छा खासा आशिक छोड़ा था ये सोच कर की सरकारी नौकरी है लड़के की। सुसरा नसीब ही फूटा हुआ है जो ये दिन देखने पड़ रहे हैं...

घोंगा:- (चुप चाप साइड से कटते हुए , मानो सुनामी आ पड़ी हो जैसे।)

पन्डतायन:- ...आने दो आज उस कलमूही को। मार मार के खाल ना उधेड़ी तो मैं भी उसकी माँ नहीं।

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