...

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सपना
सपने में देखा था उसको
लाल सूट में आई थी
सफेद पुट्टी उङा रही थी
धूल मेरे पर छाई थी
मैने कहा क्या है बचपना
बोली साफ करूंगी मैं
पकङ कर मेरे कन्धों को तब
शीतल फूक लगाई थी

हाव भाव सब शान्त पङे थे
मेरे सम्मुख खङी हुई थी
शायद कुछ कहना चाहती हो
चिंता उसकी बङी हुई थी
धीरे धीरे अधरों से जब
सुगन्धित हवा लगाती है
मेरे मुख पर लगी धूल को
धीरे - धीरे उङाती है

बीज प्रेम का उसने बोया
मेरा भी आपा तब खोया
बात नहीं थी शायद कुछ भी
कुण्ठित होकर हृदय भी रोया
बात दनादन खूब कर रहे
वो धीरे धीरे धूल हटाती
तनिक जरा सीधे तो ठहरो
बातें उसकी मुझे भी भाती


धूल हटाकर गले लगाया
मैं भी स्तब्ध मौन हो गया
उसको थोडे अश्रु आ गऐ
यही देखकर मैं भी रो गया
बहुत कसक पीङा थी उसको
मैनें भी उसको था पकङा
धीरे धीरे कुछ कुछ कहती
गले लगाकर उसने जकङा


कानों में वो सब कुछ कह गई
गर्म हवा शीतल सी बह गई
चेहरे उसके खुशी आ गई
और अधिक सुन्दर सी भा गई

मैंने उसको खुब घुमाया
सपने में था सब कुछ पाया
मानो सब कुछ अपना हो गया
चन्द मिनट में सपना हो गया

© ले./ क. अनुराग तिवारी