...

3 views

नवरात्रि: नवदुर्गा: मां का चौथा रूप
चतुर्थ नवरात्रि इस दिन मां के चतुर्थ, कुष्मांडा रुप की पूजा होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर केवल अंधकार ही अंधकार था तब इन देवी ने अपने
मंद हास्य से इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करने के कारण ही इनका नाम कुष्मांडा हुआ।इनका निवास सूर्य लोक के अन्दर के लोक में है इसलिए इनकी कान्ति और प्रभा सूर्य के समान है, ब्राम्हण का कोई देवी देवता इनके
तेज की बराबरी नहीं कर सकता। संसार के सभी प्राणियों में विद्यमान तेज इनकी छाया मात्र है। इनकी आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्हें अषट भुजा धारी भी कहते हैं। इनके एक हाथ में कमंडल, थनुष,बाण,कमल पुष्प चक्र,गदा,
अमृत कलश और जपमाला है।यह जपमाला
सभी निधियों और सिद्धियों को देने वाली है।
संस्कृत में ब्रम्हांड कुम्हड़े अर्थात
कद्दू को कहा जाता हैं,इन देवी को कुम्हड़े की
बलि विशेष प्रिय है। इस कारण भी ये कुष्मांडा
नाम से पूजी जाती हैं। कुष्मांडा देवी की उपासना बहुत ही सावधानी पूर्वक और शुद्ध
मन से की जानी चाहिए। कुष्मांडा देवी की पूजा करने से रोग -शोक से मुक्ति मिलती है, इनकी उपासना से आयु आरोग्य और बल की
वृद्धि होती है।
कुष्मांडा देवी की पूजा में नारंगी और लाल रंग के वस्त्र धारण करने से पूजा के
फलों में वृद्धि होती है ,मां की प्रसन्नता के लिए
चमेली के फूल अर्पित करने चाहिए
मां कुष्मांडा देवी सूर्य ग्रह का
प्रतिनिधित्व करतीं हैं। इनकी उपासना करने
से कुण्डली में विद्यमान सूर्य ग्रह का अशुभ
प्रभाव समाप्त हो जाता हैं
कुष्मांडा देवी को प्रसन्न
करने के लिए मालपुआ का भोग लगाना चाहिए।
जय माता की
© सरिता अग्रवाल