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अनपढ़ "मां"
अनपढ़ मां मेहनत मजदूरी करके अपना बेटा
अच्छि पढ़ाई-लिखाई करके बढ़ा अफसर बने
यह ख्वाहिश पुरी करने दिन-रात एक करते करते अनपढ़ मां अपने बेटे को अंग्रेजी बोलने लिखने के वास्ते काॅनव्हेंट स्कूल में पढ़ाने के लिए एक एक पैसा जुटाकर स्कूल कि फिस भरती रुखी सुखी रोटी खाकर कभी कभी तो भुखे पेट काम करते हुए अपने बेटे को अच्छा खाना खिलाया करती थी और अच्छे कपड़े पहनने तथा पढ़ने किताबों के लिए पैसों का इंतजाम करती और खुद फटे कपड़ों में अपनी इज्जत बचाने जरूरत ही कपड़े पहनकर गुजारा करती थी कभी भी उसने अपने बेटे को गरिबी का एहसास नही होने दिया हर एक जरुरतों को पूरा करने कोई भी कसर न छोढती थी ऐसे करते करते एक दिन अनपढ़ मां का एकलौता लाडला बेटा अच्छि तरह से पढ़ाई-लिखाई करके बहुत बड़ा अफसर बन गया और नौकरी करने बढ़े शहर में जा बसा ऐसे ही कुछ दिन बीतते गए नौकरी करते करते अनपढ़ मां को बीना बताए अपने ही मित्र कि बहन के साथ धूमधाम से शादी भी की और अच्छे से अपना घर बसा लिया और एक दिन
अपनी पन्ती के साथ अपनी मां मिलने गांव चला आया अनपढ़ मां ने बहुत और अपने बेटे को खुशीयों आवभगत किया अच्छी-खासी तरह से खातीरदारी करने में तो कोई भी कसर नहीं छोड़ी हसते -मुस्कुराते मिल-जुलकर वक्त बीताते बीताते हुए अपना बेटा बहु के साथ अच्छी तरह से अंग्रेजी बोलते देख मन ही मन खुश होती थी और अपना बेटा और बहुत ऐसे ही खुशियों से लंबी उम्र जीने कि ईश्वर से दुआ मांगती थी लेकिन उस अनपढ़ मां यह नही पता चलता था कि बहु और अपना बेटा अनपढ़ मां को वृध्दाश्रम में भेजने कि बातचीत कर रहे है बेचारी मां तो अपना बेटा अंग्रेजी बोल रहा है यह सुनकर मन ही पुलकित होती थी यह कैसा विपर्यास है ना एक तरफ अनपढ़ मां अंग्रेजी समझ में नहीं आती फिर भी बहु बेटे को अंग्रेजी बोलते देखकर खोने बैठकर खुशियों से फूले न समाते हुए मन ही मन अपने बेटे को अंग्रेजी पढ़ाया-लिखाया यह सार्थक हो गया अब मैं अपने बेटे के साथ अच्छी सी जिंदगी गुजारुंगी सोचती थी और एक तरफ वहि बेटा अपनी मां समझ न सके इसलिए अपनी पन्ती के साथ अनपढ़ मां को वृध्दाश्रम भेजने कि बातचीत अंग्रेजी में कर रहा है
यह कैसी विडंबना है काॅनव्हेंट स्कूल में पढ़ाने के लिए अनपढ़ मां को कितने पापड़ बेलने पड़े थे यह तो वह बेटा क्या जाने ? पढ़ लिखकर कोई भी बढ़ा आदमी बन सकता है अपितु इन्सान बनकर इन्सानियत से जीने वाले कितने होते है ?
लेकिन याद रखना कितने भी जन्म लो कभी भी अपने "मां" के ऋण छूका नही सकते ।
।मातृदेवो भव।

© आत्मेश्वर