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ishaq wali kahani Part-2
कहने को तो बड़े लोग कह गए हैं की नाम में कुछ रखा नहीं , पर नाम जाने बिना काम चलता भी कहाँ है | जैसे चेहरा पहचानने से ज़्यादा अंतर भेदने के काम आता है, कुछ कुछ वैसा ही नाम के साथ है | नाम ऐसी बला है जो है तो आपकी पर उसका उपयोग सबसे ज्यादा दूसरे करते हैं , जैसे रिक्शेवाले का रिक्शा हो : होता रिक्शेवाले का है पर बैठते और लोग ही हैं |
इसलिए नाम की महिमा अपरम्पार न भी हो तो अपार तो है ही...
तो , अब तक की कहानी में ( मने भूमिका की भी भूमिका में ) आपने जाना कालोनी , घर और हमारे अब तक के तीन पात्रों के बारे में | अब चूँकि ये तीनों काफी दूर तक जायेंगे तो इनके नाम भी पता होने ज़रूरी हैं | चीज़ों का आईडिया रहेगा |
नायकों को नाम देना उतना ही मुश्किल काम है मेरे लिए जितना कोई एक कहानी कह पाना | इसलिए नाम अप्रसांगिक लगें तो गलती मेरी होगी |
ये कहना मुश्किल है की तीनों में कहानी का मुख्य पात्र कौन सा है इसलिए परिचय एक बार फिर कालोनी के भूगोल के आधार पर कराने की कोशिश कर रहा हूँ |
दो दोस्तों के घर की दीवारें कॉमन नहीं हैं पर कोने कॉमन हैं | उसमे से एक का नाम शिव और एक का नाम शेखर है |शेखर को घर में शेखू भी कहते हैं | शिव के पिताजी शहर के नामचीन दवाइयों के सप्लयार हैं | शेखर का अपना घरेलू व्यापार है, घरों के रख रखाव के सामान का | तीसरे दोस्त रवि का घर भौगोलिक रूप से डिस्कनेक्टेड है बाकी दोनों से | शिव और रवि की गली एक है पर घर डायगोनली अपोजिट | रवि के बगल वाला घर शिव के घर के ठीक सामने है और अभी तक "तालायमान" है |
शेखू छत फांद कर अक्सर शिव के घर आ जाता है और चूँकि शिव की पढाई का कमरा ऊपर ही है , इसलिए अक्सर वहीँ पाया जाता है | शेखू का पढ़ाई से नाता बहुत दूर के फूफा के पड़ोसी जैसा है | शिव...