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जीवंत

आज सुबह उठते ही मुझे अपने दादा-दादी याद आए। यूँ तो बहुत अधिक यादें नही हैं पर हाँ कुछ मीठे पल बीते थे उनके साथ।

मम्मी बताती हैं मेरे जन्म पर सबसे ज़्यादा खुश दादा ही थे क्योंकि मैं उन्हें रूई की गुड़िया लगती थी।

सुनने में अजीब है पर बचपन में जब भी वो घर आते थे, मैं उनकी गोदी में बैठकर उनकी बड़ी-बड़ी मूँछो से खेला करती थी। वो डाँटते पर उनकी प्यार वाली डाँट मुझ पर बे-असर थी।

वो साधारण सा धोती-कुर्ता पहन कम बोलनेे वाले व्यक्ति थे। वहीं दादी चंचल और स्वभाव की तेज़ थीं, जो छोटी-छोटी बातों पर दादाजी को चिढ़ाया करतीं और उनकी डाँट खातीं।

दोनों को हम सब से बहुत प्यार था। हर साल सर्दियों में वो हमारे पास पीलीभीत आ जाते थे। हम सब चाहते थे वो हमारे साथ रहें लेकिन वो नहीं मानते क्योंकि शायद यहाँ उनके लोग नहीं थे, गाँव जैसी शान्ति और अपनापन नहीं था। वो यहाँ खुश तो रहते पर उनकी जान गाँव में बसती।

दादाजी का तीसरा हर्ट अटैक मेरे सामने हुआ। सब घबराहट में उन्हें आधी रात को ही हास्पिटल लेकर भागे। उनमें इतनी हिम्मत थी कि वे उसके बाद भी जीवित थे और स्वस्थ होकर गाँव लौटे।

कुछ महीनों बाद खबर आई कि दादी चल बसीं, कारण नहीं पता कि उन्हें हुआ क्या था सिवाए इसके कि वो बीमार थीं।

दादाजी गाँव में अकेले रह गये। कभी-कभी वो अपने भाईयों के पास घूम आते थे। अकेलेपन में वो भी दुनियाँ से जाना चाहते थे और ईच्छाशक्ति खत्म होते ही बिना बीमारी वो हमें छोड़ गये।
अन्तिम बार उन्हें देखने, मैं (पहली बार) अपने गांव जा रही थी और पहली बार किसी को बे-जान देखने वाली थी।

घर के अन्दर पहुंचे तो अजीब सा माहौल,सब रो रहे थे और दादाजी एसे लग रहे थे जैसे आराम से लेटें हों। ना जाने क्यों मुझे रोना नहीं आया, मैं बस उन्हें देखती रही। उनके होठों पे तब भी हल्की मुस्कान और चेहरे पर सुकून था। वो मेरे लिए तब भी जीवन्त थे और आज भी जीवंत हैं!!

photo credit. sheroes application.
#happygrandparentsday.
© प्रज्ञा वाणी