मुलाकात
मैं (रितिका) न्यू न्यू ऑफिस में ज्वाइन हुई थी,
आपको तो पता ही है की फर्स्ट टाइम जब हम कही किसी नई जगह में जाते है तो एक अजीब सी बेचैनी होती है या डर भी कह सकते है , मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ था उस वक्त,एक दो हफ्ते लगे खुद को उस जगह में ढालने के लिए उसके बाद सब नॉर्मल हो गया जैसे की मैं यहीं की हूं अनजान तो बिलकुल नहीं हूं ।
मेरे वहां एक भी दोस्त नहीं थे और ना ही किसी से उतनी जान पहचान हुई थी , हां कहने के लिए एक मात्र दोस्त थी पिंकी वो मेरे ही साथ काम करती थी । कुछ दिनों बाद मेरे ही ऑफिस के एक सीनियर (राघव) से ऑफिस से रिलेटेड प्रेजेंटेशन को लेकर बात हुई तब से उनसे एक बड़े भाई जैसा रिश्ता बन गया मैं उन्हें तब भईया बोलने लगी रघु भईया, वे बहुत ही अच्छे इंसान है जब भी कोई प्रॉब्लम होती मैं उनसे मदद ले लिया करती थी ।
रघु भईया भी मुझे एक छोटी बहन जैसा मानते थे,
और फिर मैं पिंकी और रघु भईया जब भी वक्त मिलता खूब बातें...
आपको तो पता ही है की फर्स्ट टाइम जब हम कही किसी नई जगह में जाते है तो एक अजीब सी बेचैनी होती है या डर भी कह सकते है , मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ था उस वक्त,एक दो हफ्ते लगे खुद को उस जगह में ढालने के लिए उसके बाद सब नॉर्मल हो गया जैसे की मैं यहीं की हूं अनजान तो बिलकुल नहीं हूं ।
मेरे वहां एक भी दोस्त नहीं थे और ना ही किसी से उतनी जान पहचान हुई थी , हां कहने के लिए एक मात्र दोस्त थी पिंकी वो मेरे ही साथ काम करती थी । कुछ दिनों बाद मेरे ही ऑफिस के एक सीनियर (राघव) से ऑफिस से रिलेटेड प्रेजेंटेशन को लेकर बात हुई तब से उनसे एक बड़े भाई जैसा रिश्ता बन गया मैं उन्हें तब भईया बोलने लगी रघु भईया, वे बहुत ही अच्छे इंसान है जब भी कोई प्रॉब्लम होती मैं उनसे मदद ले लिया करती थी ।
रघु भईया भी मुझे एक छोटी बहन जैसा मानते थे,
और फिर मैं पिंकी और रघु भईया जब भी वक्त मिलता खूब बातें...