" गुलाब का एक बेरंग फूल" भाग-1 लेखक मनी मिश्रा
.....तुम्हारी आंखें बेहद प्यारी हैं, शायद यह बात तुम नहीं जानती.......
इतना कहते-कहते वो रुक गया था ।वह कौन था? यह मैं नहीं जानती।कहाँ से आया था? ये भी मै नही जानती।
लेकिन उसे मालूम नहीं कि उसकी वह बातें और मेरा वह "एक दिन" इसी बगीचे में इसी जगह आज भी ठहरे हुए हैं, बर्फीली हवाओं के थपेड़ों से जर्द पड़े, दावेदार के इन पेड़ों की तरह ।जिनके ऊपर बर्फ की परतें सूर्य की किरणों में शीशे की तरह चमक रही हैं।पिछले तीस सालों से, तबसे-जबसे मैंने यह शहर छोड़ा था। और पलट कर फिर कभी वापस नहीं आई थी ।
हालांकि ये पेड़ पहले से काफी बड़े और घने हो चुके हैं।
" इसलिए इन पेड़ों की सबसे निचली डाली से मैं अब पत्तों को नही तोड़ सकती। उन्हें छु तक नहीं सकती।"
"लेकिन..... लेकिन मैं अब भी बैठ...
इतना कहते-कहते वो रुक गया था ।वह कौन था? यह मैं नहीं जानती।कहाँ से आया था? ये भी मै नही जानती।
लेकिन उसे मालूम नहीं कि उसकी वह बातें और मेरा वह "एक दिन" इसी बगीचे में इसी जगह आज भी ठहरे हुए हैं, बर्फीली हवाओं के थपेड़ों से जर्द पड़े, दावेदार के इन पेड़ों की तरह ।जिनके ऊपर बर्फ की परतें सूर्य की किरणों में शीशे की तरह चमक रही हैं।पिछले तीस सालों से, तबसे-जबसे मैंने यह शहर छोड़ा था। और पलट कर फिर कभी वापस नहीं आई थी ।
हालांकि ये पेड़ पहले से काफी बड़े और घने हो चुके हैं।
" इसलिए इन पेड़ों की सबसे निचली डाली से मैं अब पत्तों को नही तोड़ सकती। उन्हें छु तक नहीं सकती।"
"लेकिन..... लेकिन मैं अब भी बैठ...