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"आखिरी खत"
नौशीन का बस अभी अभी ही फिरोज के साथ निकाह हुआ था। दोनों ने लव मैरिज की थी। निकाह के बाद नौशीन फिरोज के साथ दिल्ली चली आई थी। यहाँ फिरोज और नौशीन अकेले ही रहते थे। नौशीन का ससुराल लखनऊ में था और मायका भी क्योंकि खुद नौशीन लखनऊ की थी। शुरू शुरू में तो सब कुछ ठीक ठाक रहा लेकिन धीरे धीरे फिरोज और नौशीन के रिश्ते में दूरियाँ आने लगी वजह नौशीन का जरा जरा सी बात पर गुस्सा हो जाना और फिरोज को बिलकुल न समझना।
उसे फिरोज के साथ वक्त बिताने की चाहत रहतीं दूसरी ओर फिरोज अपने काम में व्यस्त रहा करते थे।
एक दिन फिरोज घर आए तो नौशीन ने कुछ दिन लखनऊ जाने की अपनी इच्छा जताई। फिरोज राजी हो गयें और खुद नौशीन को लखनऊ छोड़ गए।
लखनऊ आकर नौशीन अपनी अम्मी से लिपट कर खूब रोई और अपना हाल ए दिल कह सुनाया।
सुनकर अम्मी मुस्कुरा दी और उसे अपने करीब बिठाया और बोलीं "बेटा कोई भी रिश्ता आपसी समझ और बेहतरीन तालमेल से ही मुकम्मल होता है और मियां बीवी का रिश्ता तो और भी इन सबमें मायने रखता है। सिर्फ पाना ही नहीं कभी खोना भी पड़ना है"।
नौशीन कुछ समझ नहीं पाई तो अम्मी बोलीं बेटा जब मेरा निकाह तुम्हारे अब्बू से हुआ था तब तो मैं एक सयुंक्त परिवार में दुल्हन बन कर आई थी। सास ससुर ननद देवर आदि से घर भरा हुआ रहता था। दिन भर घर के कामों में व्यस्त रहा करती और रात को ही तुम्हारे अब्बू से बातें हो पातीं। मगर मैने बगैर शिकायत अपनी हर जिम्मेदारियों को निभाया।
नौशीन ने अम्मी से पूछा तो क्या आपको कभी अब्बू से कोई शिकायत नहीं हुई? नौशीन मुस्कुराई और बोलीं हुई थी बहुत शिकायत हुई थी क्योंकि मेरी सास अत्यधिक सख्त मिज़ाज की थी जरा सी भूल पर बहुत नाराज हो जाती तब मै भी अपनी अम्मी के पास जाकर खूब रोया करतीं तब अम्मी ने एक दिन मुझसे कहाँ बेटी तुम अपने हर कर्तव्य का पालन खूब अच्छी तरह करो एक दिन सब ठीक होगा।
उस समय आज की तरह घर घर फोन नहीं हुआ करते तब किसी के घर जाकर अगर उनके यहाँ फोन हो तो बात की जा सकती थी। तब अम्मी मुझे खत लिखा करतीं थीं और सच कहूं तो उनके खतों से मुझे बड़ा हौसला मिलता और जिन्दगी को समझने का अनुभव भी। धीरे धीरे मै भी परिपक्व होती गई और घर में सभी का दिल भी जीतने लगी। समय बड़ा बलवान होता है बेटी शुरू शुरू में जो लोग ससुराल में आप पर हावी हुआ करते है बाद में वही आपके मुरीद हो जातें है। अम्मी के खतों के जरिये मैने जिन्दगी को एक नये ढंग से देखना शुरू किया और मेरी सोच और नजरिया सब कुछ बदल गया। फिर अचानक वो खत आने बंद हो गयें मैं परेशान हो उठीं जब मायके फोन किया तो अम्मी के इंतकाल की खबर मिली आनन फानन में मायके दौड़ पड़ीं वहाँ जाकर देखा तो अम्मी सो चुकीं थी मगर उनका आखिरी खत मुझे उनके इंतकाल के बाद मिला जो कि वो लिख चुकी थी पोस्ट नहीं कर पाई थी। ये खत मुझे अब्बू ने दिया था।
उसमें उन्होने मुझे कहाँ था बेटी मैने आज तलक़ तुमसे जो भी खतों में साझा किया है सब अपने जिन्दगी के अनुभव से किया है हो सकें तो जिंदगी के इस अनुभव को अपनी बेटी को भी सिखाना ताकि उसे कभी कोई दिक्कत न पेश आये। उसके बाद अम्मी ने एक बक्सा खोला उसमें नानी के तमाम खत रखें हुए थे जो अम्मी ने नौशीन को दे दिया।
कुछ दिनों बाद नौशीन दिल्ली वापस आ गई और फुर्सत में बैठकर वो नानी के खतों को पढ़ा करतीं थीं।
और कुछ वर्षों बाद वो भी परिपक्व हो चुकी थी और फिरोज से उसका कभी कोई झगड़ा नहीं होता था।
क्योंकि नानी के खतों ने उसे भी जिंदगी को समझने और जीने का ढंग सिखा दिया था।
(समाप्त) समय-10:6


© Deepa🌿💙