जागो जागो सुबह हो गयी!
अरे भाई, जागो जागो, सुबह हो गई! सूरज देवता अपनी किरनों के साथ हमें जगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हम? हम तो बस "पाँच मिनट और" की गुहार लगा रहे हैं।
क्या बात है इस सुबह के आलस में! जैसे ही अलार्म बजता है, वैसे ही हम उसे बंद करने की कला में निपुण हो जाते हैं। मानो अलार्म ने हमारी नींद चुरा ली हो और हम उसे पकड़ने के चक्कर में हैं।
"जागो जागो, सुबह हो गई!" - यह वाक्य सुनकर तो नींद जैसे और गहरी हो जाती है। जैसे ही किसी ने कहा, "उठो, काम पर जाना है", वैसे ही बिस्तर ऐसा महसूस करने लगता है जैसे दुनिया का सबसे आरामदायक स्थान हो।
अब तो तकनीक भी हमें उठाने की कोशिश कर रही है। अलार्म क्लॉक, स्मार्टफोन के अलार्म, और भी न जाने क्या-क्या! लेकिन नहीं, हम अपने बिस्तर से इतनी मोहब्बत करते हैं कि वह हमें छोड़ने को तैयार ही नहीं होता।
सच्ची बात तो यह है कि सुबह की नींद सबसे मीठी होती है। अगर कभी मम्मी-पापा उठाने आ जाएं, तो हम उनके सामने ऐसे अनजान बन जाते हैं जैसे कभी सोए ही नहीं। "अभी सोया कहाँ था, बस आँख बंद थी," यह तो हर बच्चे की पसंदीदा लाइन है।
तो अब समय आ गया है कि हम अपनी इस आदत से बाहर निकलें। क्योंकि देर से जागने का मतलब है जल्दी-जल्दी तैयार होना, बिना नाश्ते के भागना, और फिर दिनभर के काम में उलझे रहना।
तो चलिए, उठते हैं, नई ऊर्जा के साथ। सुबह की ताजगी का आनंद उठाते हैं और दिन की शुरुआत करते हैं। लेकिन एक वादा करें, अलार्म को snooze करना छोड़ दें!
जब हम सुबह उठने की बात करते हैं, तो याद आता है कि सुबह-सुबह नाश्ते की तैयारी भी एक कला है। उठते ही भागते-दौड़ते नाश्ता तैयार करना, एक हाथ में ब्रश, दूसरे में टोस्टर – यह सीन कुछ तो कमाल का होता है।
किचन में घुसते ही अगर दूध का पैकेट न फटे, तो जैसे दिन की शुरुआत ही अधूरी रहती है। और अगर गलती से चीनी की जगह नमक डाल दिया तो? क्या कहने! पूरा परिवार ऐसे प्रतिक्रिया देगा जैसे कोई बड़ी अनहोनी...
क्या बात है इस सुबह के आलस में! जैसे ही अलार्म बजता है, वैसे ही हम उसे बंद करने की कला में निपुण हो जाते हैं। मानो अलार्म ने हमारी नींद चुरा ली हो और हम उसे पकड़ने के चक्कर में हैं।
"जागो जागो, सुबह हो गई!" - यह वाक्य सुनकर तो नींद जैसे और गहरी हो जाती है। जैसे ही किसी ने कहा, "उठो, काम पर जाना है", वैसे ही बिस्तर ऐसा महसूस करने लगता है जैसे दुनिया का सबसे आरामदायक स्थान हो।
अब तो तकनीक भी हमें उठाने की कोशिश कर रही है। अलार्म क्लॉक, स्मार्टफोन के अलार्म, और भी न जाने क्या-क्या! लेकिन नहीं, हम अपने बिस्तर से इतनी मोहब्बत करते हैं कि वह हमें छोड़ने को तैयार ही नहीं होता।
सच्ची बात तो यह है कि सुबह की नींद सबसे मीठी होती है। अगर कभी मम्मी-पापा उठाने आ जाएं, तो हम उनके सामने ऐसे अनजान बन जाते हैं जैसे कभी सोए ही नहीं। "अभी सोया कहाँ था, बस आँख बंद थी," यह तो हर बच्चे की पसंदीदा लाइन है।
तो अब समय आ गया है कि हम अपनी इस आदत से बाहर निकलें। क्योंकि देर से जागने का मतलब है जल्दी-जल्दी तैयार होना, बिना नाश्ते के भागना, और फिर दिनभर के काम में उलझे रहना।
तो चलिए, उठते हैं, नई ऊर्जा के साथ। सुबह की ताजगी का आनंद उठाते हैं और दिन की शुरुआत करते हैं। लेकिन एक वादा करें, अलार्म को snooze करना छोड़ दें!
जब हम सुबह उठने की बात करते हैं, तो याद आता है कि सुबह-सुबह नाश्ते की तैयारी भी एक कला है। उठते ही भागते-दौड़ते नाश्ता तैयार करना, एक हाथ में ब्रश, दूसरे में टोस्टर – यह सीन कुछ तो कमाल का होता है।
किचन में घुसते ही अगर दूध का पैकेट न फटे, तो जैसे दिन की शुरुआत ही अधूरी रहती है। और अगर गलती से चीनी की जगह नमक डाल दिया तो? क्या कहने! पूरा परिवार ऐसे प्रतिक्रिया देगा जैसे कोई बड़ी अनहोनी...