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Part -3- फिर कब मिलोगे
उस दिन रात को अचानक से मिलने के बाद साथ में इतनी बातें की डिनर किया और फिर अलग हो रहे थे तब मैंने पूछा था " फिर से कब मिलोगे?" और तुम ने हंसकर कह दिया "मिल जाएंगे फिर जब मिलना होगा हमें।" तुम वहां से चली गई। मैं खड़ा तुम्हें बस देखता रहा जाते हुए। तुम्हारे जाने के बाद मैं घर चला गया। घर जाते हुए रास्ते में बस तुम्हारे बारे में सोच रहा था। सोचा नहीं था कभी के यूं मिल जाएंगे हम। उस दिन रात को फेसबुक पर तुम्हारे साथ बात करने से पहले, पहली बार मेरा दिल जोरो से धड़का। तब समझ में नहीं आया था मुझे कि वह मुझे क्या हो रहा था, पर आज जब सोचता हूं तो कह सकता हूं हां पहली नजर का तुमसे प्यार मुझे हो गया था। कुछ दिन बस यूं ही बीत है और फिर एक बार हम मिले अचानक से। मैं पोएट्री शो देखने गया था और वही तुम मुझे मिले। मुझे पता नहीं था कि तुम्हें भी कविता करना अच्छा लगता है। वहां हम दोनों एक ही टेबल पर बैठकर कविताएं सुन रहे थे। एक के बाद एक जैसे जैसे कविताएं सब पढ़ रहे थे वैसे वैसे खुशनुमा सा माहौल हो रहा था। इश्क जैसे हवाओं में बेहे रहा था। और वही सामने मेरे साथ तुम बैठी हुई थी। क्या कहूं जब एक कवि ने बहुत खूब शेर सुनाया,
"बनाया है उस रब ने तुझे बड़ी फुर्सत में,
बनाया है उस रब ने तुझे बड़ी फुर्सत में,
और क्या कहूं तुम्हारी तारीफ में,
अल्फ़ाज़ नहीं मिल रहे तुमरारी तारीफ में।"
इस शेर को सुनकर ऐसा लगा जैसे वह बस तुम्हारे लिए ही बनाया गया था। कवियों की महफिल खत्म हुई। फिर तुमने मुझसे पूछा था कि "क्या मुझे आता है कविता करना" और मैंने कहा था "नहीं आता है पर लगता है आज से कर लूंगा।" तुम बस यह जवाब सुनकर हस्ती रही। और मैं तुम्हें बस देखता रहा।