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भक्त

© Nand Gopal -----------------------
माता के दरबार में एक भक्त, बहुमूल्य चढ़ावे की थाल लेकर आता है ।
आँखें बंद कर, मंत्रोच्चारण कर
कहता है, हे माते कृपा कर ।
अर्पित है चरणों में, बहुमूल्य उपहार ।
मेरा अटका हुआ काम हो जाए,
मुझे वह मकान मिल जाए,
रोजगार चल निकले, फिर मैं -
जागरण कराऊँगा,
माता का श्रृंगार करूंगा ।
मूर्ति ने कहा, मैं प्रसन्न हुई ।
लेकिन इतना बता दे,
मेरा ही प्रतिरूप, जिसने तुझे जन्म दिया -
क्यों सिसक रही है घर पर,
क्यों नहीं मांगा उससे ?
भक्त ने कहा, उसने तो सबकुछ कर दिया मेरे नाम ।
अब है ही क्या उसके पास, आँसुओं के सिवा ।
मूर्ति ने कहा, अगर तू आँसू न देता तो
वह दुआ देती और तेरी मनोकामना पूर्ण होती ।
मैं विवश हूँ, मैंने अपने अधिकार उसे देखिये हैं ।
अब मैं तुझे कुछ नहीं दे सकती ।
लेकिन अब तुझे,
उन आँसुओं की कीमत चुकानी होगी,
जो तूने उसे दिए हैं ।