...

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बेबसी...
बरसों से घायल और बिखरी आत्मा को एक दिखावे के खूबसूरत परिधान में लपेट कर ना जाने वो दुनिया को धोखा दे रही थी, या स्वयम को l अब तो एक आदत सी हो चली थी, उनके साथ जीने की l पता नहीं और अब तो याद भी नहीं, आखरी बार किस बात पर और कब वो दिल खोल कर खिलखिलाई थी l अपनी ही श्वास लेती मृत देह को ढोते ढोते अब इतना थक चुकी थी कि एक चिर निंद्रा में सदा के लिए सो जाने की एक अंतिम इच्छा ही उसे सर्वोपरि लगती थी l
निरीह और पथराई आँखे सब देख कर भी अनदेखा कर देती थी l सृष्टि की हर सुंदरता उसके लिए बेमानी हो चुकी थी l अपने खुश्क आँसुओं के तेजाब से तन्हाई में अपने जख्मों को रोज़ हरा करती और उनसे रिस्ती विवशता को हलाहल की तरह कंठ में ही रोक लेती l
कोई कितना भी चाहे, उसके इस रूप तक पहुँचना असंभव था l कोई नहीं जानता था कि हर बात पर मुस्कान बिखेरती, हर एक के दर्द की मरहम बनती, वो सहरा में खड़े एक सूखे वृक्ष की तरह है, जिसमें ना तो जीवन है और ना ही कोई जीवंत अहसास l
दूर तक फैले बेरंग आसमाँ में एक काल्पनिक हठी बादल जैसे उस पर अपनी छाया कर, कुछ पलों का सुकूँ देने को आतुर होता उसे महसूस होता था किंतु सूरज की चाल के आगे उसकी एक ना चलती थी l अगले ही पल एक भीष्ण तपिश से वो फिर से झुलस जाती थी l ना उसकी कल्पना हार मान रही थी, ना सूरज l रोज़ के इस द्वंद से अब वो ऊब चुकी थी, लेकिन वो कुछ पल की छाँव की कल्पना भी जैसे उसे मरहम बन एक शीतलता देती थी l
कुछ पलों के लिए ही सही, वो स्वयं में जैसे फिर से एक नई ऊर्जा भरने का असफल ही सही, पर प्रयास तो करती थी l
हर हकीकत से वाक़िफ़ होने के बावजूद और अपनी क्षीणता का भान होने पर भी, किसी एक कमजोर लम्हें में एक आस उसके लगभग मृतप्राय हृदय में अक्सर दस्तक देती..... क्या कभी वो उसका काल्पनिक बादल अपने साथ एक स्वाति बूंद लाकर उसके अंदर कहीँ गहरे दबे किसी सूखे मृत अहसास में प्राण फूँक पायेगा........... ?? क्या वो फिर से कभी, कुछ गहरी सांसे ले कर जीवन की शीतलता को महसूस कर पायेगी ????


© * नैna *