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जीवन के सजीव रंग

बिटिया ये बताओं कि तुम्हारी मम्मी को तो आज मामा के यहाँ मकर संक्रांति पर्व मनाने जाना था ,पर मैं तो उन्हें यहीं किचन में काम करते देख रहा हूँ ,क्या बात है जाना कैंसिल हो गया है ? (जानने की उत्सुकता में राजेश ने फुसफुसाते हुए बिटिया रानी से पूछा )

पापा मुझे भी कुछ मालुम नहीं लगता है हमारे लिए तिल गुड़
पपड़ी और खिचड़ी बनाने के बाद जाने वाली हो रानी ने धीरे से जवाब दिया !

अहा ! क्या मस्त महक आ रही है भाई मेरे तो मुँह में पानी आ रहा है ,अरे ! राधा क्या हमें भी खाने को मिलेगा कुछ ? राजेश ने जोर से कहा ।
ना ,बाबा ना बिना भगवानजी को भोग लगाए ,मंदिर में खिचड़ी चढ़ाए बिना एक दाना भी नहीं !
राधा ने सख्ती से जवाब दिया ।
अच्छा ,जी कोई बात नहीं पर क्या एक कप चाय तो मिलेगी या उसके लिए भी इंतजार करना होगा ?
राजेश के लहजे में नरमी थी ।
जी अभी लाई !(राधा चाय बनाकर लाती है )
तो राजेश मकर संक्रांति पर पीहर जाने वाली बात दोहराता है ,जिसे सुनकर राधा की ऑंखें भर आती हेै )

-राधा क्या बात है एकाएक यह अश्रुधार क्यों ?राजेश ने पूछा
नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं पर अब नहीं जाना मुझे यहीं रहूँगी सदा ,
यहीं ,(बहुत पूछने पर राधा अपने भाई ,भाभी के द्वारा पिछले त्यौहार पर किए गए दुर्व्यवहार की बात बताती हैं कहती हैं वे बात नहीं करते दूजभाँत करते हैं )
ऐसा हैं तो कोई बात नहीं अपना मन दुःखी मत करों
मत जाओं पर मैं सोचता हूँ कि ,
तुम्हारी माँ ने तो ऐसा कुछ नहीं कहा न ! वो कह भी नहीं सकती क्योंकि वो माँ है ,माँ का हृदय विशाल होता है अपनी संतान के लिए ,और तुम तो अपनी माँ के बुलावे पर ही तो जा रही हो न ?राजेश ने उसे समझाते हुए कहा ।
हाँ पर घर में तो भाई भाभी भी है न उन्हें कैसे अनदेखा करेंगे मैं नहीं जा पाऊँगी । अबोलापन मुझे बर्दाश्त नहीं होता ।
-मैंने कब कहा उन्हें अनदेखा करने का,उन्हें सहन करने का पर उनसे भी प्रणाम कर,आशीष तो लेना ही है त्यौहार का समय है अपनों के लिए मन में मैल नहीं लाते !
-हाँ हाँ पर मैं क्या करूँ ?(राधा लगभग रोने को थी )

-जब माँ ने बुलाया है तो खुशी खुशी जाओं !
अगर नहीं जाती हो तो भी अपने मुँह से कोई कटु बात मत कहो न संवादहीनता आने दो ,
क्यूंकि रिश्ते संवादहीनता से ही टूटते हैं भाई भाभी अपने आप धीरे धीरे सुधर जाएँगे और नहीं भी सुधरे तो हमें क्या ,कहाँ रोज रोज उनके घर जाना है पर रिश्ता खराब नहीं करना है ,प्रेम बनाए रखना है ,
आगे तुम्हारी मर्जी तुम ख़ुद समझदार हो ।राजेश ने बात समाप्त करते हुए कहा ।
हाँ हाँ मुझे भी आपकी बात समझ आ रही है सही कह रहे हैंआप मेरा भी मानना है माँ है तो मौसार है पिता है तो परिवार है और इनके इर्दगिर्द अपना संसार है ।उसने अपनी सहमति जताते हुए कहा ।अब राधा आश्वस्त र्थी ,उदासी का स्थान प्रसन्नता ने ले लिया था ।
-अरे ! वाह क्या फिलासफी है ? उत्साह ही उत्सव का
उद्गम है ,हम रोष,रंज,ग़म से उत्सव के रंग फीके कर देते हैं उत्सव हँसी ख़ुशी उल्लास भाव को बढ़ाने वाला ,मेल मिलाप का द्योतक है ।
हम उसे प्रायःअपनी वैयक्तिक दूषित सोच से मलीन कर देते हैं ,जिससे उसका उद्देश्य ही गुम हो जाता है ।वैभव,ज्ञान,पौरूष,प्रकृति,नवीनता,शांति और हर्ष भाव से ही सजते हैं सजीव रंग जीवन के इन्द्रधनुष के !
इन्हीं रंगों-तरंगों में घुलकर बह जाने दो विषाक्तता मन के विकारों की !
राजेश ने दार्शनिक अंदाज में कहा ।
हाँ जी हाँ मुझे अच्छे से याद हो गया है परिवार का महत्व ,त्यौहार की गरिमा ,जो जो आपने बताया सभी ।
हाँ आप भी समय से काम निपटा लेना,पतंगबाजी में ही उलझे मत रहना ।राधा ने मीठी झिड़की से कहा ।
एक बात कहूँ राधा मैं भी साथ चलूँ क्या ?तुम्हारा मुड फ्रेश रहेगा और सहज भी रहोगी । राजेश के स्वर में आग्रह था ।

नहीं नहीं आपका यहॉं रुकना जरूरी है दीदी आ रही है तो उनको अच्छा फील नहीं होगा ,भाई उनकी आव भगत के लिए आप यहीं रूकिए ।आप कुशल प्रबन्धक जो ठहरे । राधा ने अपना विचार राजेश से कहा ।
ठीक है तुम्हीं चले जाना ,बस में बिठाने तक का
फर्ज तो मेरा बनता ही है न चलो जल्दी से तैयार हो जाओं ,
राजेश तैयार होते हुए बोला ।
राधा -जी , अभी आई कहकर अन्दर जाकर जाने की तैयारियों को अंतिम रूप देने लगी ।(उसके मुख पर जीवन के सजीव रंग एक नई आभा से मुस्कुरा रहे थे ।)

©MaheshKumar Sharma
15/1/2023
मकर संक्रांति पर्व की मंगलमयी शुभकामनाएँ 💐💐

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