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बेबसी और गम भरा खत........
कुछ खत इसलिए भी नहीं पहुंचे क्योंकि एक बार फिर उन खातों का जवाब नहीं आता , पर वह सिर्फ खत नहीं थे उनमें छिपी थी वह सारी अनकही बातें जो मैं तुमसे कभी कह नहीं सका... उनमें लिखी थी वो मोहब्बते जिस मोहब्बत की हमेशा से चाहत रही मुझे ... उसमे छिपी थी मेरी बेबसी....
खैर ....
आप इन बातों का कोई मतलब नहीं...फिर भी ना जाने क्यों अक्सर तुम्हारे नाम पर एक खत लिखने बैठ जाता हूं। ...जबकि पता होता है कि इन खतों को इनकी मंजिल कभी नहीं मिलेगी.... ये बंद रह जाएंगे ताउम्र फिर डायरी के पन्नों के बीच.... और एक दिन किसी शाम जला दिए जाएंगे... यूं ही आंखों के सामने ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे नाम लिखे तमाम खत को जला दिया गया.....💌
फर्क बस इतना होगा कि इस बार शायद उस आग में इन खतों के साथ दिल 💙 ना जले .. या फिर जले भी तो वो अपना आत्मसमान जलने से तो बेहतर ही होगा ना ... जाना..
हां इन खतों के साथ जलेंगे वो आंसू जिन्हें आंखों से बहाने की इजाजत नहीं मिली थी हमें.....
वो आंसू जिन्हें ना जाने कितनी रातों में तकिए और चादरों में छिपाया गया ....

शायद इसीलिए भी जला देता हूं इन खतों को कि गर कहीं ये कभी किसी के हाथ लग गए तो कहीं वो शख्स इन खतों को पढ़कर चीख ना उठे ....कहीं अनजाने में ही मेरे खत किसी और की अजीयत ना दें.....
मैं कभी नहीं चाहता कि मेरे गम मेरी तकलीफ फिर कभी और पढ़ी या दोहराई जाएं ....

✍️ अनुज चन्द्रा
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