...

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कटी पतंग सी
एक पतंग जो आसमान में उड़ती है
वो आसमा के एक छोर से दूसरे तक उड़ना चाहती है
उसे पसंद है उड़ना,पर उसकी ऊंचाई और दिशा दोनो
वह डोर तय करती है जो किसी और के हाथ में होती है।
वो तोड़ देना चाहती है इस बंधन को,वो अलग होना चाहती है इस डोर से पर जानती है अगर अलग हुई तो कटी पतंग बन जायेगी।
वो उस बंधन को इस तरह जीने लगती है की जिस दिन अलग होती है दिशाहीन हो जाती है।
भटक जाती है , ये भटकाव जरूरी होता है कई बार सही ऊंचाई और दिशा के लिए।
ऐसे ही हम भी कई बार कुछ रिश्तों की डोर से मुक्त होते हैं और दिशा भूल जाते हैं।
कई बार बंधन जरूरी होता है शायद पर क्या कोई बंधन मुक्ति तक ले कर जा सकता है?
कई बार हम भी बन जाते हैं उसी पतंग की तरह
जब बंधन में थी वो तो आजाद होना चाहती थी
जब आजाद है तो दिशाहीन।
अब सारी बात इस पर निर्भर करता है की उस पतंग के लिए क्या ज्यादा जरूरी है?
उसकी खुद की ऊंचाई और दिशा या जो उसे बांधे रखती है उस बंधन वाली ऊंचाई।
पतंग को वक्त लगता है ये तय करने में तो क्या जरूरी नहीं की उसे दिया जाए थोड़ा सा वक्त।
आखिर ये जल्दीबाजी किस बात की है?
इतने डर क्यों दिमाग में बो दिए जाते हैं?
आपका सही वक्त सही दिशा और ऊंचाई कोई और कैसे तय कर सकता है।
सुनो तुम खुद चुनो,बिना डरे, दिल कई बार परेशान होगा तानो से पर सुकून, सुकून अलग ही होता है खुद की चुने गमों को भी जीने में।
मुझे तो यही लगता है,तुम्हारे लिए जरूरी है की तुम्हे क्या लगता है?
बैठो किसी दिन खुद के साथ और करो थोड़ी बातें खुद की खुद से।
जवाब सारे तुम्हारे सवालों में ही मिलेंगे।
कई बार बस जरूरी होता है,कुछ वक्त खुद के साथ बिताना बस।
तो निकालो थोड़ा वक्त दुनिया से खुद के लिए।
याद रखना तुम भी जरूरी हो,सब के जितना ही।

#जिंदगीखूबसूरतहै
#मुस्कुराओ
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