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लुई - प्रथम प्रकरण
लुई रुद्रपुर में -

जून का महीना था, गर्मी से आग बरस रही थी और इसी बीच बुलबुल ने स्कूल में एंट्री ली। जिस दिन स्कूल आयी, तो फैलो टीचर डोली ने उसको स्कूल की परिचय प्रणाली हेतु सभी स्टाफ मेम्बर्स से मिलवाया। वहीं पहली बार लुई और बुलबुल मिले। उसके अगले दिन शाम में वो चाय स्नेक्स के समय लुई से मिली। दोनों ने ग्रीट किया एक दूसरे को और वो लुई के पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी। लुई उन दिनों cbse के इयरली लेसन प्लान के बारे में पढ़ रहा था जिसमें मल्टीप्ल इंटेलिजेंस का एक कॉलम था। लुई को इतना पता था कि ये टॉपिक साइकॉलजी के सिलेबस का भी हिस्सा है।

एक टाइम था जब लुई कोलिज के दिनों के कई साल बाद भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में यहां वहां गंजेड़ी बन कर घूमता फिरता था घोंगे के साथ। बाकी सब दोस्त जब तक दिल्ली छोड़ के जा चुके थे, जो बचे थे वो दोस्त कम फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स ज्यादा थे। खुद को रंग दे बसंती का डीजे समझता था लुई। उन दौरान लुई की मुलाकात आयुष से हुई थी जो दिल्ली विश्वविद्यालय में साइकॉलजी एम.ए का छात्र था। एरीज जोडीएक था। लुई भी एरीज, दोनों फायर साइन। घोंगा भी फायर था मगर लियो। घोंगा ही मिलवाया था। अब दोस्ती होना तो तय था। यूँ ही बात करते करते आयुष ने एक दिन जिक्र किया था मल्टीपल इंटेलिजेंस की प्रमुखता का। तो लुई को याद था। जब बुलबुल से मुलाकात हुई तो लुई ने यूँ ही उसका ओपिनियन पूछ लिया। और यहीं से...