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गुलामी बनाम गुलामी - गुलामी बनाम सेवा।
#गुलामी बनाम गुलामी।
या
गुलामी बनाम #सेवा।
#अग्रेजों की गुलामी बनाम #सरकार की गुलामी।
या
#सरकारों, #अंग्रेजों और #मुगलों की गुलामी बनाम #राजा के प्रति सेवा का भाव।

स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।

क्या शानदार व्यक्तव्य है?? सुनने में बहुत अच्छा लगता है।

किंतु क्या सबको स्वतंत्र रखना सही है??

अगर सही है तो ईश्वर सबको एक जैसा ही पैदा करता।
जन्म के साथ ही भेद नही होते... मैं रंग और शक्ल की बात नही कर रहा।

मैं बात कर रहा हूँ बुद्धि की, विवेक की, तार्किक क्षमता की।
सभी मनुष्यों का विवेक एक जैसा नही होता इसलिए जन्म से ही भेद होता है।
ये भेद हमें समय के साथ उसके मन, कर्म और वचन की क्रिया से पता चलता है।

क्या सबको स्वतंत्रता चाहिए थी??
या ये कुछ अय्याश बुद्धिजीविओं की जिज्ञासाओं का परिणाम है??
अगर उन्हें देश की गुलामी की इतनी ही चिंता थी तो उन्हे पहले ही बता देना चाहिए था कि अंग्रेज़ों की गुलामी से आजादी देकर अब सरकार की गुलामी करनी है।
ताकि वो चुन पाते?? इससे उनके अंदर मलाल तो ना होता।
ये देश हमेशा से गुलाम रहा है ऐसा बताया जाता है किंतु बात कुछ और है।
क्योंकि गुलामी और सेवा में बहुत अंतर है... गुलामी जबरन करवाई जाती है किंतु सेवा में स्वयं के समर्पण का भाव होता है।

जब वर्ण व्यवस्था बनी थी तब ये समस्या नही थी क्योंकि उस समय सबको अपना धर्म यानी कर्तव्य पता थी। किंतु समय के साथ शासन करने वाले कमजोर होते गए और ये व्यवस्था कमजोर होती चली गयी। सभी शासक अपने हिसाब से व्यवस्था समझाकर उसे इतना कमजोर कर दिया कि सेवा अब गुलामी से भी ज्यादा गलत लगने लगा।

जब तक देशी नरेशों का शासन था तब सभी वर्णों के लोग आपस में सामंजस्य बिठा कर चलते थे। केवल राजा को ही स्वतंत्रता का अधिकार था बाकी सभी लोग शासन में रहते थे।
जिसे राजा बनाया जाता था वो मन, कर्म और वचन तीनों से प्रजा पर शासन(सेवा का भाव) करने योग्य होता था। साथ में उनके मंत्री, सलाहकार आदि उन्हें समय समय पर सही सलाह देकर उनकी कृति बढ़ाते रहते थे।

सब लोग राजा के शासन में रहकर उनको कर(टैक्स) देते थे और खुशी खुशी रहते थे, जब समस्या या अकाल पड़ता था तो राजा उनके साथ खड़े रहते थे।

माता - पिता या गुरु की सेवा की जाती है आपने कभी नही सुना होगा कि लोग माता - पिता या गुरु की गुलामी करते हैं।
राजा भी प्रजा के लिए पिता समान ही होता है।

अभी तक सब लोग राजा के सेवक थे।

जैसे जैसे राजा कमजोर यानि अय्याश होते गए बाहरी आक्रांताओं ने उनपर शासन करना शुरू कर दिया। तभी से लोगों में सेवा का भाव कम गुलामी का भाव ज्यादा आ गया।
मुगलों ने उनके धर्म ही नही, उनके बहु बेटियों को भी अपना गुलाम बना लिया।

तब आये अंग्रेज़, व्यापारी बन कर।

अंग्रेज़ों में व्यापारी स्वभाव होने के कारण ये काग़ज़ के बड़े पक्के थे मतलब मुगलों में नियम कानून नही था लेकिन अंग्रेज़ों में नियम कानून बड़े शक्त थे।
मुगलों और अय्याश राजाओं पर शासन करते अंग्रेज़ों को देर नही लगी।

अब अंग्रेज़ भी इनकी अय्याशी देखकर लोगों पर गुलाम जैसा ही व्यवहार करने लगे।
अब इस गुलाम में मुगल और अय्याश राजा भी शामिल हो गए।
अब उन्हें भी स्वतंत्रता चाहिए था।
तब जाकर कुछ लोगों में स्वतंत्रता का भाव देखकर उसका फायदा ये मुगल बादशाह और अय्याश राजाओं ने उनका साथ देकर उठाया।

स्वंतंत्रता का भाव तो पहले भी आते थे किंतु किसी का साथ ना होकर वो स्वतंत्रता का भाव आंदोलन का रूप नही लेती थी। जब उनको साथ मिला तब जाकर देश को आज़ादी तो मिली लेकिन गुलामों को नही....क्योंकि अब ये लोग गुलामी सरकार की किया करते हैं।
सरकार की गद्दी पर अब जो बैठे बाकी लोग उसके गुलाम होते हैं।

गुलाम की ना कोई जात होती है और ना ही धर्म।
गुलाम कोई भी जात या धर्म का हो सकता है ये बात का पता लोगों को कब चलता है जब सरकार चुनाव करवाती है।
ये हम पाठकों के विवेक पर छोड़ देते हैं कि वो अपने आप को गुलाम मानते हैं या सेवक?? या राजा??
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