बड़ी हवेली में
#शर्त
चंदन को शर्त लगाना और फिर उसे जीतना बहुत पसंद था। हर बात पर शर्त लगाना उसकी आदत में शुमार हो गया था। इसलिए चंदन को लोग शर्तिया चंदन कह कर बुलाते थे। आज फिर उस ने शर्त लगाई थी आनंद से कि वह बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़ के लायेगा।
आम तोड़ लाना, ऐसा कोई मुश्किल काम जान नहीं पड़ता। गांव में तो अक्सर हम ऐसा कर लिया करते हैं। ये और बात थी कि चंदन के इस गांव की इस बड़ी हवेली में अभी भी ठाकुर साहब की ठकुराई चला करती थी। गांव की अधिकांश जनसंख्या अहीरों और निचले तबके के लोगों की थी लेकिन आज़ादी के इतने साल बाद ठाकुर साहब की जमींदारी भले न रही हो मगर भला हो सरकार की कारगुज़ारी, पंचों की मिलीभगत और पंडितों के जाति आधारित धर्म का कि यहाँ बरसों पुरानी जाति व्यवस्था अभी चरमराई नहीं थी।
गांव वालों के लिए बड़ी हवेली में कदम रखना भी पाप समान था। ऐसा तब ही होता जब शहर से बड़े कलेक्टर साहब आते और उनकी सेवा के लिए कुछ लोगों की ज़रूरत होती।
खैर, चंदन को काहे का...
चंदन को शर्त लगाना और फिर उसे जीतना बहुत पसंद था। हर बात पर शर्त लगाना उसकी आदत में शुमार हो गया था। इसलिए चंदन को लोग शर्तिया चंदन कह कर बुलाते थे। आज फिर उस ने शर्त लगाई थी आनंद से कि वह बड़ी हवेली के बगीचे से दस आम तोड़ के लायेगा।
आम तोड़ लाना, ऐसा कोई मुश्किल काम जान नहीं पड़ता। गांव में तो अक्सर हम ऐसा कर लिया करते हैं। ये और बात थी कि चंदन के इस गांव की इस बड़ी हवेली में अभी भी ठाकुर साहब की ठकुराई चला करती थी। गांव की अधिकांश जनसंख्या अहीरों और निचले तबके के लोगों की थी लेकिन आज़ादी के इतने साल बाद ठाकुर साहब की जमींदारी भले न रही हो मगर भला हो सरकार की कारगुज़ारी, पंचों की मिलीभगत और पंडितों के जाति आधारित धर्म का कि यहाँ बरसों पुरानी जाति व्यवस्था अभी चरमराई नहीं थी।
गांव वालों के लिए बड़ी हवेली में कदम रखना भी पाप समान था। ऐसा तब ही होता जब शहर से बड़े कलेक्टर साहब आते और उनकी सेवा के लिए कुछ लोगों की ज़रूरत होती।
खैर, चंदन को काहे का...