...

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अखबार सी जिंदगी....
चौराहे पे चाय की दुकान पर सुबह-सबेरे आने वाले
अख़बार की तरह हो गई है मेरी जिंदगी..
दुकान पर कई तरह के मिज़ाज वाले वाले लोग आते हैं
चाय पीने; अखबार पढ़ने..
सुबह की ज़ल्दीबाजी में लोग
ना पूरी चाय पीते हैं
और ना ही पूरा अखबार पढ़ते हैं..

वो उठाते हैं अखबार से बस वही पन्ना
जिसमें उनको रुचि होती है,
वो पढ़ते हैं बस वो ख़बर
जो उनको पसंद आती है
या जिससे उनकी दिनचर्या जुड़ी हो
जैसे: बुजुर्ग राजनीति की, युवा देश-दुनिया की,
और खेल-प्रेमी जो हैं.. खेल-जगत का पन्ना निकाल के पढ़ते हैं।
ठीक ऐसे ही मेरी जिंदगी में भी हैं कुछ लोग
जो बस आते हैं अपनी ज़रूरत, अपनी मर्जी से
बस अपने बारे में मेरी सोच, मेरे जज़्बात को जानने,
जब उनको उनकी अहमियत बता देता हूँ
वे चले जाते हैं मुझे रद्दी समझ के,
उसी अखबार की तरह
जिसे सुबह लोग अपने ज़रूरत की खबर पढ़ के
शाम को उसी अखबार पे समोसे के साथ चटनी और चाय खाते हैं.......


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