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zainab chapter 01
मैं ज़ैनब की अम्मी.मेरा नाम जानना इतना ज़रूरी नहीं है क्यू की जब से में वजूद में आई हु तब से लोग मुझे ज़ैनब की अम्मी के नाम से ही पहचानते है.आज मेरे लिए बहुत बड़ा दिन है. अभी थोड़ी देर में मेरी ज़ैनब का नाम अनाउंस होगा और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठेगा.और एक बार फिर सब मुझे ज़ैनब की अम्मी के नाम से पहचानेगे.
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आज मेरा ससुराल में पहला दिन है.सुबह नमाज़ से उठी हुई हूँ लेकिन रूम के बहार जाने से डर लग रहा है.फिर भी मेने रूम का दरवाज़ा थोड़ा तो खुला रखा है अगर कोई देख ले तो ये न कहे की दुल्हन अभी तक सो रही है....
घर में बाहरगाम से आए हुए काफी महेमान थे.मेरे ससुराल का माहौल मायके से काफी अलग है, इन का बात करने का तरीका अलग, खाने का जायका अलग,सरे रिवाज अलग.थोड़ी ही देर में मेरे मायके से मेरी कौसिन्स आने वाले है.मेरी पसंद का नाश्ता ले कर.क्यू की मेने पहले ही कहा था कि मेरे लिए क्या ले कर आना है.
मेने मेरे शौहर को नींद से जगाया और कहा की तैयार हो जाए मेरे घर से लोग आने वाले है.थोड़ी ही देर में वो लोग आए लेकिन उससे पहले मेरे ससुराल वालो ने मुझे नाश्ता करवा दिया था.अब ज़ाहिर सी बात थी पहले ही दिन में बेशरम हो कर पेट भर कर तो नहीं खा सकती ना.और मेरे मायके वालो के साथ कुछ मेरे ससुराल वाले भी बैठे हुवे थे नाश्ते के लिए तो वहां भी कुछ नहीं खा सकी.
अब थोड़ा मुझे सोने के लिए कहा गया कि आराम करो, शाम को वलीमा भी था.तैयार करने के लिए जल्दी ही आने वाली थी.शाम हुई, वलीमे के लिए तैयार हुई, हॉल पर गए और इस तरह शादी के सारे फंक्शन हो गए.कुछ दिनों में महेमान भी गए और उस के बाद मुझे मेरे मायके आने की इज़ाज़त भी मिल गई.
शादी के बाद मायके का पहला दिन बहुत अलग सा लगा मुझे.ऐसा कि शायद में अजनबी हूँ.लेकिन मुझे ताज्जुब तब हुवा की मुझे 3 ही दिन में मेरे शौहर की आदत हो चुकी थी.मुझे नींद नहीं आ रही थी.
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अब में ससुराल में थोड़ी एडजस्ट हो चुकी थी.में अपने मायके बहुत कम जा रही थी.मुझे अच्छा लग रहा है यहाँ.काफी लोग है यहाँ, दादी,सास ससुर, एक ननद और में और मेरे शौहर. मेहमानो का आना जाना तो बरकत ही है. अब पता चला कि यहां सब से ज्यादा अहम बात ये है कि तुम चाहे कितने भी स्वाभिमान से भरे हो ससुराल में एडजस्ट होना हो तो स्वाभिमान को सब से पहले घर से बाहर रख कर आओ।